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________________ नवमो उद्देसो : नवां उद्देशक पंचविह-देव-पदं १६३. कतिविहा णं भंते ! देवा पण्णत्ता ? गोयमा! पंचविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-भवियदव्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा॥ संस्कृत छाया पञ्चविध-देव-पदम् कतिविधाः भदन्त ! देवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! पञ्चविधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा:-भव्यद्रव्यदेवाः, नरदेवाः, धर्मदेवाः, देवातिदेवाः, भावदेवाः। हिन्दी अनुवाद पंचविध देव पद १६३. भंते ! देव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! देव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव देवातिदेव और भावदेव । १६४. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा ? गोयमा! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवेसु उववज्जित्तए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-भवियदब्वदेवा-भवियदव्वदेवा॥ तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यतेभव्यद्रव्यदेवा-भव्यद्रव्यदेवाः? गौतम! यः भव्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक: वा, मनुष्यः वा देवेषु उपपत्तुम्। तत तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-भव्यद्रव्यदेवा-भव्यद्रव्यदेवाः। १६४. भंते ! भव्यद्रव्यदेव भव्यद्रव्यदेव-यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? गौतम ! जो भव्य पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक अथवा मनुष्य मृत्यु के पश्चात् देवों में उपपन्न होने वाले हैं, गौतम! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-भव्यद्रव्यदेव भव्यद्रव्यदेव। १६५. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- नरदेवा-नरदेवा ? नरदेवा-नरदेवाः? गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंत- गौतम! ये इमे राजानः चतुरन्तचक्कवट्टी उप्पण्णसमत्तचक्कर- चक्रवर्तिनः उत्पन्नसमस्तचक्ररत्नयणप्पहाणा नवनिहिपइणो समिद्ध- प्रधानाः नवनिधिपतयः समृद्धकोषाः कोसा बत्तीसरायवरसहस्साणुयात- द्वात्रिंशत् राजवरसहस्रानुयातमार्गाः मम्मा सागरवरमेहलाहिवइणो सागरवरमेखलाधिपतयः मनुष्येन्द्राः । मणुस्सिंदा। से तेणटेणं गोयमा ! एवं तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेवुच्चइ-नरदेवा-नरदेवा॥ नरदेवा-नरदेवाः । १६५. भंते ! नरदेव नरदेव-यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? गौतम ! जो ये चातुरन्त चक्रवर्ती राजा उपपन्न समस्त रत्नों में प्रधान चक्र वाले, नौ निधि के अधिपति, समृद्ध कोश वाले हैं, बत्तीस हजार श्रेष्ठ राजा उनके मार्ग का अनुसरण करते हैं, समुद्र की प्रवर मेखला के अधिपति और मनुष्यों के इन्द्र हैं, गौतम! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-नरदेव नरदेव। १६६. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ धम्मदेवा-धम्मदेवा ? गोयमा ! जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया जाव गुत्तभयारी। से तेणट्टेणं गोयमा! एवं बुचइधम्मदेवा-धम्मदेवा॥ तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- धर्मदेवा-धर्मदेवाः? गौतम! ये इमे अनगाराः भगवन्तः ईर्यासमिताः यावत् गुप्तब्रह्मचारिणः तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-धर्मदेवाधर्मदेवाः । १६६. भंते ! धर्मदेव धर्मदेव-यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? गौतम ! जो ये अनगार भगवन्त विवेक पूर्वक चलते हैं यावत् ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखते हैं, गौतम ! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-धर्मदेव धर्मदेव। १६७. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ- देवातिदेवा-देवातिदेवा ? गोयमा! जे इमे अरहंता भगवंतो तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- देवातिदेवा-देवातिदेवाः? गौतम! ये इमे अर्हन्तः भगवन्तः १६७. भंते ! देवातिदेव देवातिदेव-यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? गौतम ! जो ये अर्हत् भगवान् उत्पन्न ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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