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________________ भगवई श.८: उ.२: सू. १८४-१८६ नाणाणं विसय-पदं ज्ञानानां विषय-पदम् ज्ञान का विषय-पद १८४. आभिणिबोहियनाणस्स णं भंते! । आभिनिबोधिकज्ञानस्य भदन्त ! कियान् १८४. भंते? आभिनिबोधिकज्ञान का केवतिए विसए पण्णत्ते? विषयः प्रज्ञप्तः? विषय कितना प्रज्ञप्त है? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, गौतम ! सः समासतः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद् गौतम! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः। संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्स हैं, जैसेभावओ। द्रव्यतः आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से. काल दव्वओ णं आभिणिबोहियनाणी सर्वद्रव्याणि जानाति-पश्यति। क्षेत्रतः की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन सर्वं क्षेत्र द्रव्य की दृष्टि से आभिनिबाधिकज्ञानी खेत्तओ णं आभिणिबोहियनाणी जानाति-पश्यति। कालतः आभिनिबोधि- आदेशतः सब द्रव्यों को जानता, देखता आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। ज्ञानी आदेशेन सर्वं कालं जानाति-पश्यति। कालओ णं आभिणिबोहियनाणी भावतः आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन क्षेत्र की दृष्टि से आभिनिबाधिकज्ञानी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। सर्वान् भवान् जानाति-पश्यति। आदेशतः सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। भावओ णं आभिणिबोहियनाणी काल की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ-पासइ॥ आदेशतः सर्वकाल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशतः सब भावों को जानता-देखता १८५. सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए श्रुतज्ञानस्य भदन्त ! कियान् विषयः प्रज्ञप्तः? १८५. भंते! श्रुतज्ञान का विषय कितना विसए पण्णत्ते? प्रज्ञप्त है? गोयमा! से समासओ चउब्बिहे पण्णत्ते, गौतम! सः समासतः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद् गौतम! श्रुतज्ञान का विषय संक्षेप में चार तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः। प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य की दृष्टि भावओ। द्रव्यतः श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्वद्रव्याणि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाई जानाति पश्यति। क्षेत्रतः श्रुतज्ञानी भाव की दृष्टि से। जाणइ-पासइ। उपयुक्तः सर्वक्षेत्रं जानाति पश्यति।। द्रव्य की दृष्टि से श्रुतज्ञानी उपयुक्त खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं कालतः श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्वकालं अवस्था में (जेय के प्रति दत्तचित होने पर) जाणइ-पासइ। जानाति-पश्यति। भावतः श्रुतज्ञानी सब द्रव्यों को जानता-देखता है। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वकालं उपयुक्तः सर्वभावान् जानाति पश्यति। क्षेत्र की दृष्टि से श्रुतज्ञानी उपयुक्त जाणइ-पासइ। अवस्था में सब क्षेत्रों को जानता-देखता भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे जाणइ-पासइ। काल की दृष्टि से श्रुतज्ञानी उपयुक्त अवस्था में सर्वकाल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से श्रुतज्ञानी उपयुक्त अवस्था में सब भावों को जानता-देखता है। १८६.ओहिनाणस्स णं भंते! केवतिए अवधिज्ञानस्य भदन्त ! कियान् विषयः १८६. भंते! अवधिज्ञान का विषय कितना विसए पण्णत्ते? प्रज्ञप्तः? प्रज्ञप्त है? गोयमा ! से समासओ चउबिहे पण्णत्ते, गौतम ! सः समासतः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, गौतम ! अवधिज्ञान का विषय संक्षेप में तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः। चार प्रकार का प्रज्ञाप्त हैं, जैसे-द्रव्य की भावओ। द्रव्यतः अवधिज्ञानी जघन्येन अनन्तानि दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि दव्वओ णं ओहिनाणी जहण्णेणं अणंताइं रूपिद्रव्याणि जानाति-पश्यति। उत्कर्षेण से, भाव की दृष्टि से। रूविदव्वाइं जाणइ-पासइ। उक्कोसेणं । सर्वाणि रूपिद्रव्याणि जानाति-पश्यति। द्रव्य की दृष्टि से अवधिज्ञानी जघन्यत: सव्वाई रूविदव्वाइं जाणइ-पासइ। क्षेत्रतः अवधिज्ञानी जघन्येन अंगुलस्य अनंत रूपी द्रव्यों को जानता-देखता है। खेत्तओ णं ओहिनाणी जहणणं असंख्येयतमं भागं जानाति-पश्यति। उत्कृष्टतः वह सब रूपी द्रव्यों को जानता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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