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________________ भगवई ७६. जइ सच्चमणपयोगपरिणया किं यदि सत्यमनःप्रयोगपरिणते किम् आरंभसच्चमणपयोगपरिणया? जाव आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणते? यावत् असमारंभसच्चमणपयोग-परिणया? असमारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणते? गोयमा! आरंभसच्चमणपयोगपरिणया । गौतम! आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणते वा वा जाव असमारंभसच्च-मणपयोग- यावत् असमारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणते परिणया वा, अहवेगे आरंभसच्च- वा अथवैकम् आरम्भसत्यमनःप्रयोगमणपयोगपरिणए, एगे अणारंभसच्च- परिणतम्, एकम् अनारम्भसत्यमनःप्रयोगमणपयोगपरिणए। एवं एएणं गमेणं परिणतम्। एवम् एतेन गमेन द्विककसंयोगेन दुयासंजोएणं नेयव्वं, सव्वे संजोगा जत्थ नेतव्यम, सर्वे संयोगाः यत्र यावन्तः जत्तिया उद्वेति ते भाणियव्वा जाव उत्तिष्ठन्ति ते भणितव्याः यावत् सर्वार्थसव्वट्ठसिद्ध-गत्ति॥ सिद्धका इति। श. ८ : उ. १ : सू. ७६-७९ ७६. यदि सत्यमन प्रयोगपरिणत हैं तो क्या आरम्भसत्यमन प्रयोगपरिणत हैं? यावत् असमारम्भ सत्यमन प्रयोगपरिणत हैं? गौतम ! आरम्भसत्यमन प्रयोगपरिणत भी हैं यावत् असमारम्भ सत्यमन प्रयोगपरिणत भी हैं। अथवा एक आरम्भ सत्यमन प्रयोगपरिणत है, एक अनारम्भ सत्यमन प्रयोगपरिणत है। इस प्रकार इस गमक के अनुसार दो के संयोग से होने वाले भंग ज्ञातव्य हैं, सब सांयोगिक भंग जहां जितने हो सकते हैं, वे सब यावत् सर्वार्थसिद्ध तक वक्तव्य हैं। यदि मिश्रकपरिणते किं मनोमिश्रकपरिणते? ७७. जइ मीसापरिणया किं मणमीसा- परिणया? एवं मीसापरिणया वि॥ ७७. यदि मिश्रपरिणत हैं तो क्या मन मिश्रपरिणत हैं? इस प्रकार मिश्रपरिणत की भी वक्तव्यता। एवं मिश्रकपरिणते अपि। ७८. जइ वीससापरिणया किं वण्ण- यदि विस्रसापरिणते किं वर्णपरिणते? परिणया? गंधपरिणया? गन्धपरिणते? एवं वीससापरिणया वि जाव अहवेगे। एवं विस्रसापरिणते अपि यावत् अथवैकं चउरंससंठाणपरिणए, एगे चतुरस्रसंस्थानपरिणतम्, एकम् आयतआयतसंठाणपरिणए॥ संस्थानपरिणतम्। ७८. यदि विस्रसापरिणत हैं तो क्या वर्ण परिणत हैं ? गन्धपरिणत है? इस प्रकार विस्रसा परिणत की भी वक्तव्यता यावत् अथवा एक चतुरस्र संस्थान परिणत है, एक आयत संस्थान परिणत है। तिण्णि दव्वाइं पडुच्च पोग्गल-परिणति- त्रीणि द्रव्याणि प्रतीत्य पुद्गल-परिणति- तीन द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गल परिणतिपदम् पद ७९. तिण्णि भंते! दव्वा किं पयोग- त्रीणि भदन्त! द्रव्याणि किं प्रयोग- ७९. भन्ते! तीन द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत है? परिणया?मीसापरिणया ?वीससा- परिणतानि? मिश्रकपरिणतानि? विस्रसा- मिश्रपरिणत हैं ? विस्रसापरिणत है? परिणया? परिणतानि? गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. गौतम! १.प्रयोगपरिणतानि वा २. मिश्रक- गौतम! १.प्रयोगपरिणत भी हैं २. मीसापरिणया वा ३. वीससा-परिणया परिणतानि वा ३. विस्रसापरिणतानि वा ४. मिश्रपरिणत भी हैं ३. विस्रसापरिणत भी वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, दो अथवैकं प्रयोगपरिणतम, द्वे मिश्रकपरिणते हैं ४. अथवा एक प्रयोगपरिणत है. दो मीसापरिणया ५. अहवेगे पयोगपरिणए, ५. अथवैकं प्रयोगपरिणतम्, द्वे विससा- मिश्रपरिणत हैं ५. अथवा एक दो वीस-सापरिणया ६. अहवा दो परिणते ६. अथवा द्वे प्रयोगपरिणते, एकं प्रयोगपरिणत है, दो विससापरिणत हैं ६. पयोग-परिणया, एगे मीसापरिणए ७. मिश्रकपरिणतम् ७. अथवा द्वे प्रयोगपरिणते अथवा दो प्रयोगपरिणत हैं, एक अहवा दो पयोगपरिणया, एगे एकं विससापरिणतम् ८. अथवैकं मिश्रक- मिश्रपरिणत है ७. अथवा दो वीससापरिणए ८. अहवेगे मीसा- परिणतम, द्वे विस्रसापरिणते ९. अथवा द्वे प्रयोगपरिणत है, एक विस्रसापरिणत है परिणए, दो वीससापरिणया ९. अहवा मिश्रकपरिणते, एकं विस्रसापरिणतम् १०. ८. अथवा एक मिश्रपरिणत है, दो विस्रसा दो मीसा-परिणया, एगे वीससापरिणए अथवैकं प्रयोगपरिणतम्, एक मिश्रक- परिणत हैं ९. अथवा दो मिश्र परिणत हैं, १०.अहवेगे पयोग-परिणए, एगे परिणतम्, एकं विस्रसापरिणतम् । एक विस्रसापरिणत है। १०. अथवा एक मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए।। प्रयोगपरिणत है, एक मिश्रपरिणत है, एक विस्रसापरिणत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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