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७-३४ उद्देसो : ७-३४ उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
अन्तरद्वीप-पद १०२. भंते! उत्तर दिशा में एक पैर वाले मनुष्यों का एकोरूक द्वीप कहां प्रज्ञप्त है ?
अंतरदीव-पदं
अन्तरद्वीप-पदम् १०२. कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं । कुत्र भदन्त! औत्तराहानाम् एकोरुकम. एगूरुयमणुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे नुष्याणाम् एकोरुकद्वीपः नाम द्वीपः पण्णत्ते?
प्रज्ञप्तः? एवं जहा जीवाभिगमे तहेव निरव-सेसं । एवं यथा जीवाभिगमे तथैव निरवशेषं यावत् जाव सुद्धदंतदीवो त्ति। एए अट्ठावीसं शुद्धदन्तद्वीपः इति। एते अष्टाविंशतिः उद्देउद्देसगा भाणियव्वा॥
शकाः भणितव्याः।
इस प्रकार जैसे जीवाभिगम की वक्तव्यता वैसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् शुद्धदंत द्वीप की वक्तव्यता। ये अट्ठाइस उद्देशक वक्तव्य है।
१०३. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव
अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त ! इति यावत् आत्मानं भावयन विहरति।
१०३. भंते! वह ऐसा ही है, भंते ! वह ऐसा ही है यावत् भगवान् गौतम संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
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