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________________ भगवई श.९ : उ. ३२ : सू. १०४-१०९ २५८ एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्ख- एवं यथा नैरयिकप्रवेशनकः तथा तिर्यगजोणियपवेसणए वि भाणियब्वे जाव योनिकप्रवेशनकोऽपि भणितव्यः यावत् असंखेज्जा॥ असंख्येयाः। प्रकार जैसे नैरयिकप्रवेशनक वैसे तिर्यक्योनिक-प्रवेशनक वक्तव्य है यावत् असंख्येय। १०५. उक्कोसा भंते! तिरिक्ख-जोणिया उत्कर्षाः भदन्त ! तिर्यग्योनिकाः तिर्यग- १०५. भंते ! उत्कृष्ट तिर्यकयोनिक तिर्यक् - तिरिक्खजोणियपवेसण-एणं-पुच्छा। योनिकप्रवेशकेन-पृच्छा। योनिकप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए एकेन्द्रिय में होते हैं?-पृच्छा। गंगेया! सव्वे वि ताव एगिदिएसुहोज्जा, गाङ्गेय! सर्वे अपि तावत् एकेन्द्रियेषु भवन्ति, गांगेय! सब एकेन्द्रिय में होते हैं, अथवा अहवा एगिदिएसु वा बेइंदिएसु वा अथवा एकेन्द्रियेषु वा द्वीन्द्रियेषु वा भवन्ति। एकेन्द्रिय में और द्वीन्द्रिय में होते हैं। इस होज्जा। एवं जहा नेरझ्या चारिया तहा एवं यथा नैरयिकाः चारिताः तथा तिर्यग- प्रकार जैसे नैरयिकों की चारणा की, वैसे तिरिक्ख-जोणिया वि चारेयव्वा। योनिकाः अपि चारयितव्याः। एकेन्द्रियान् ही तिर्यक्योनिकों की भी चारणा करनी एगिदिया-अमुयंतेसुदुयासंजोगो, तिया- अमुञ्चत्सु द्विकसंयोगः, त्रिकसंयोग, चाहिए। एकेन्द्रियों को न छोड़ते हुए संजोगो, चउक्कसंजोगो, पंच-संजोगो चतुष्कसंयोगः, पञ्चसंयोगः उपयुज्य द्विसंयोग, त्रि-संयोग, चतुष्क-संयोग, उवमुंजिऊण भाणियन्वो जाव अहवा भणितव्यः यावत् अथवा एकेन्द्रियेषु वा पंच-संयोग उपयुक्त योजना कर वक्तव्य हैं एगिदिएसु वा, बेइंदिएसु वा जाव द्वीन्द्रियेषु वा यावत् पञ्चेन्द्रियेषु वा, यावत् अथवा एकेन्द्रिय में, द्वीन्द्रिय में पंचिंदिएसुवा होज्जा॥ भवन्ति। यावत् पंचेन्द्रिय में होते हैं। १०६. भंते! इन एकेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले यावत् पंचेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यकयोनिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? १०६. एयस्स णं भंते! एगिदियतिरिक्ख- एतस्य भदन्त! एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक- जोणियपवेसणगस्स जाव पंचिदिय- प्रवेशनकस्य यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यग- तिरिक्खजोणियपवेसणगस्स य कयरे योनिकप्रवेशनकस्य च कतरे कतरेभ्यः कयरेहितो अप्पा वा? बहुया वा? अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? विशेषाधिकाः वा। गंगेया! सव्वथोवे पंचिंदियतिरिक्ख- गाङ्गेय! सर्वस्तोकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्- जोणियपवेसणए, चउरिंदियतिरिक्ख- योनिकप्रवेशनके, चतुरिन्द्रियतिर्यगजोणियपवेसणए विसेसाहिए, तेइंदिय- योनिकप्रवेशनके विशेषाधिकाः, त्रीन्द्रियतिरिक्खजोणियपवेसणए विसेसाहिए, तिर्यग्योनिकप्रवेशनके विशेषाधिकाः, बेइंदियतिरिक्ख . जोणियपवेसणए द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रवेशनके विशेषाविसेसाहिए, एगिदियतिरिक्खजोणिय- धिकाः, एकेन्द्रियतिर्यगयोनिकप्रवेशनके पवेसणए विसेसाहिए। विशेषाधिकाः। गांगेयः पंचेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यक्योनिक सबसे अल्प हैं, चतुरिन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यक्योनिक उनसे विशेषाधिक हैं, त्रीन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यक्योनिक उनसे विशेषाधिक हैं, द्वीन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यक्योनिक उनसे विशेषाधिक हैं, एकेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यक्योनिक उनसे विशेषाधिक हैं। १०७. मणुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे मनुष्यप्रवेशनकः भदन्त! कतिविधः प्रज्ञप्तः? १०७. भंते! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार पण्णत्ते? का प्रज्ञाप्त है ? गंगेया! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- गाङ्गेय! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- गांगेय! दो प्रकार का प्रज्ञाल है, जैसेसमुच्छिममणुस्सपवेसणए, गब्भ- सम्मूर्छिममनुष्यप्रवेशनकः गर्भाव- सम्मूर्छिममनुष्यप्रवेशनक, गर्भावक्रांतिक वक्कंतियमणुस्सपवेसणए य॥ क्रान्तिकमनुष्यप्रवेशनकः च। मनुष्यप्रवेशनक। १०८. एगे भंते! मणुस्से मणुस्स-पवेस- एकः भदन्त ! मनुष्यः मनुष्यप्रवेशनकेन णएणं पविसमाणे किं संमुच्छिम- प्रविशन् किं सम्मूर्छिममनुष्येषु भवति? मणुस्सेसु होज्जा? गम्भवक्कंतिय- गर्भावक्रान्तिकमनुष्येषु भवति? १०८. भंते! एक मनुष्य मनुष्यप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में होता है? गर्भावक्रांतिक मनुष्यों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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