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________________ भगवई २५३ तं चेव पच्छिमो आलावगो-अहवा पश्चिमः आलापकः-अथवा चत्वारः रत्नचत्तारि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए प्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायां यावत् एकः । जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अधःसप्तम्यां भवन्ति। श.९ : उ. ३२ : सू.९७,९८ नैरयिकों के वक्तव्य है, इतना विशेष है-एक एक अभ्यधिक संचारणीय है, शेष पूर्ववत् पश्चिम आलापक-अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमी में होता है। भाष्य १. सूत्र ९५-९७ • आठ जीवों के एक सांयोगिक भंग ७ • आठ जीवों के द्वि-सांयोगिक विकल्प ७, भंग १४७ • आठ जीवों के त्रि-सांयोगिक विकल्प २१, भंग ७३५ • आठ जीवों के चतुष्क-सांयोगिक विकल्प ३५, भंग १२२५ • आठ जीवों के पंच-सांयोगिक विकल्प ३६. भंग ७३५ • आठ जीवों के षट्-सांयोगिक विकल्प २१, भंग १४७ • आठ जीवों के सप्त-सांयोगिक विकल्प ७, भंग ७ इन सात विकल्पों का प्रत्येक नरक के साथ संयोग करने पर सर्व भंग ३००३ होते हैं। •९ जीवों के एक सांयोगिक भंग.९,जीवों के द्वि-सांयोगिक विकल्प ८, भंग १६८ .९जीवों के त्रि-सांयोगिक विकल्प २८, भंग ९८० •९ जीवों के चतुष्क-सांयोगिक विकल्प ५६, भंग १९६० .९ जीवों के पंच-सांयोगिक विकल्प ७०, भंग १४७० .९जीवों षट्क-सांयोगिक विकल्प ५६. भंग ३१२ .९ जीवों के सप्ल-सांयोगिक विकल्प २८, भंग २८ इन सात विकल्पों का प्रत्येक नरक के साथ संयोग करने पर सर्व भंग ५००५ होते हैं। .१०जीवों के एक सांयोगिक भंग ७ .१० जीवों के द्वि-सांयोगिक विकल्प ९, भंग १८९ .१० जीवों के त्रि-सांयोगिक विकल्प ३६, भंग १२६० .१०जीवों के चतुष्क-सांयोगिक विकल्प ३५. भंग २९,४० .१० जीवों के पञ्च-सांयोगिक विकल्प १२६, भंग २६४६ .१० जीवों के षट्क-सांयोगिक विकल्प १२६, भंग ८८२ .१०जीवों के सप्त-सांयोगिक विकल्प ८४. भंग ८४ इन सात विकल्पों का प्रत्येक नरक के साथ संयोग करने पर सर्व भंग-८००८ होते हैं। विस्तार के लिए द्रष्टव्य ९/-९१.९३ का यंत्र। ९८. संखेज्जा भंते! नेरझ्या नेरझ्य- संख्येयाः भदन्त! नैरयिकाः नैरयिक- ९८. भंते! संख्येय नैरयिक नैरयिकप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयण- प्रवेशनकेन प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या प्पभाए होज्जा?-पुच्छा। भवन्ति?-पृच्छा। रत्नप्रभा में होते हैं?-पृच्छा। गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अहेसत्तमाए वा होज्जा। अधःसप्तम्यां वा भवन्ति ।। अधःसप्तमी में होते हैं। अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा । अथवा एकः रत्नप्रभायां संख्येयाः शर्करा- अथवा एक रत्नप्रभा में और संख्येय सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा प्रभायां भवन्ति, एवं यावत् अथवा एकः । शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् एगे रयणप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए रत्नप्रभायां संख्येयाः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा एक रत्नप्रभा में और संख्येय होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा अथवा द्वौ रत्नप्रभायां संख्येयाः शर्करा- अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा दो रत्नप्रभा सक्कर-प्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा प्रभायां भवन्ति। एवं यावत् अथवा द्वौ में और संख्येय शर्कराप्रभा में होते हैं। इस दो रयणप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए रत्नप्रभायां संख्येयाः अधःसप्तम्यां भवन्ति। प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और होज्जा। अहवा तिण्णि रयणप्पभाए अथवा त्रयः रत्नप्रभायां संख्येयाः शर्करा- संख्येय अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा तीन संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं प्रभायां भवन्ति। एवम् एतेन क्रमेण एकैकः रत्नप्रभा में और संख्येय अधःसप्तमी में एएणं कमेणं एक्कोक्को संचारेयव्वो सञ्चारयितव्यः यावत् अथवा दश रत्न- होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से एक एक जाव अहवा दस रयणप्पभाए संखेज्जा प्रभायां संख्येयाः शर्कराप्रभायां भवन्ति । एवं संचारणीय है. यावत् अथवा दस रत्नप्रभा सक्कर-प्पभाए होज्जा। एवं जाव अहवा यावत् अथवा दश रत्नप्रभायां संख्येयाः में और संख्येय शर्कराप्रभा में होते हैं। इस दस रयणप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा संख्येयाः प्रकार यावत् अथवा दस रत्नप्रभा में और होज्जा। अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए रत्नप्रभायां संख्येयाः शर्कराप्रभायां भवन्ति संख्येय अधःसप्तमी में होते हैं, अथवा संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा जाव यावत् अथवा संख्येयाः रत्नप्रभायां संख्येय रत्नप्रभा में और संख्येय अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा संख्येयाः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा शर्कराप्रभा में होते हैं यावत् अथवा संख्येय अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे एकः शर्कराप्रभायां संख्येयाः वालुकाप्रभायां रत्नप्रभा में और संख्येय अधःसप्तमी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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