________________
श.९: उ.३२ : सू. ९१
२३४
भगवई
अहवा एगे रयणप्पभाए एगे एकः रत्नप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायाम् एकः वालुयप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए। तमायाम् एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति, अथवा होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे । एकः रत्नप्रभायाम् एकः धूमप्रभायाम् एकः पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए तमायाम् एक अधःसप्तम्यां भवन्ति, अथवा होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे एकः शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे एकः पङ्कप्रभायाम् एकः धूमप्रभायां भवन्ति। अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे एवं यथा रत्नप्रभायाम् उपरितनाः पृथिव्यः रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए चारिताः तथा शर्कराप्रभया अपि उपरितनाः एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे चारयितव्याः यावत् अथवा एकः शर्करारयणप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए प्रभायाम् एकः धूमप्रभायाम् एकः तमायाम् एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा एकः सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे वालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायाम् एकः पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा। एवं धूमप्रभायाम् एकः तमायां भवन्ति, अथवा जहा रयणप्पभाए उवरिमाओ पुढवीओ एकः वालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायाम् चारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि एकः धूमप्रभायाम् एकः अधःसप्तम्यां उवरिमाओ चारियव्वाओ जाव अहवा भवन्ति, अथवा एकः वालुकाप्रभायाम् एकः एगे सक्करप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे पङ्कप्रभायाम् एकः धूमप्रभायाम् एकः तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा अधःसप्तम्यां भवन्ति, अथवा एकः एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे वालुकाप्रभायाम् एकः धूमप्रभायाम् एकः धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा, अहवा एगे । तमायाम् एकः अधःसप्सम्यां भवन्ति, अथवा वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे एकः पङ्कप्रभायाम् एकः धूमप्रभायाम् एकः धूमप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, तमायाम् एकः अधःससम्यां भवन्ति। अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा॥
में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमा में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है, अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक वालुका-प्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा से ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ विकल्पना की है, वैसे ही शर्कराप्रभा के साथ ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों की विकल्पना करनी चाहिए यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमा में होता है, अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमा में और एक
अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है।
भाष्य
१. सूत्र ९१
चार जीवों के एक सांयोगिक भंग-७ रिस वा पंधू त अधः
चार जीवों के द्वि सांयोगिक
विकल्प ३, भंग ६३ रत्नप्रभा के विकल्प ३, भंग १८ र | श वा पंधू त अधः
vo Majorjoor
११/२ |१२२
|१४|३| |१५३
१६३ 1१७३ |१८|३|
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org