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________________ दसमो उद्दसो : दसवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद सुय-सील-पदं ४४९. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-अण्णउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव एवं परुति- एवं खलु १. सील सेयं २. सुयं सेयं ३. सुयं सील सेयं॥ श्रुतशील-पदम् राजगृहे नगरे यावत् एवमवादिषुः- अन्ययूथिकाः भदन्त ! एवमाख्यान्ति यावत् एवं प्ररूपयन्ति-एवं खलु १. शीलं श्रेयः २. श्रुतं श्रेयः ३. श्रुतं शीलं श्रेयः। श्रुतशील पद ४४९. 'राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते ! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं१. शील श्रेय है २. श्रुत श्रेय है ३. श्रुत और शील श्रेय है। ४५०. से कहमेयं भंते ! एवं? अथ कथमेतद् भदन्त । एवम् ? ४५०. भंते! यह कैसे है? गोयमा! जण्णं ते अण्णउत्थिया गौतम ! यत् ते अन्ययूथिकाः एवमाख्यान्ति गौतम! जो अन्ययूथिक इस प्रकार एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाहंसु, यावत् ये ते एवमाहुः, मिथ्या ते एवमाहुः। अहं आख्यान करते हैं यावत् इस प्रकार कहते मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! पुनः गौतम! एवमाख्यामि यावत् हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! मैं इस एवमाइक्खामि जाव परूवेमिप्ररूपयामि प्रकार आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूंएवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया एवं खलु मया चत्वारः पुरुषजाताः प्रज्ञप्ताः, मैंने चार प्रकार के पुरुषों का प्रज्ञापन पण्णत्ता, तं जहा-१. सीलसंपन्ने नाम तद्यथा-१. शीलसम्पन्नः नाम एकः नो किया जैसे-१. कोई पुरुष शील संपन्न एगे नो सुयसंपन्ने २. सुयसंपन्ने नाम एगे श्रुतसम्पन्नः २. श्रुतसम्पन्नः नाम एकः नो होता है, श्रुत संपन्न नहीं होता २. कोई नो सीलसंपन्ने ३. एगे सीलसंपन्ने वि शीलसम्पन्नः३. एकः शीलसम्पन्नोऽपि पुरुष श्रुत संपन्न होता है, शील संपन्न सुयसंपन्ने वि ४. एगे नो सीलसंपन्ने नो श्रुतसम्पन्नोऽपि ४. एकः नो शीलसम्पन्न: नहीं होता। ३. कोई पुरुष शील संपन्न भी सुयसंपन्ने। नो श्रुतसम्पन्नः। होता है, श्रुत संपन्न भी होता है ४. कोई पुरुष न शील संपन्न होता है और न श्रुत संपन्न होता है। तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं तत्र यः सः प्रथमः पुरुषजातः सः पुरुषः । जो प्रथम प्रकार का पुरुष है वह शीलवान पुरिसे सीलवं असुयवं-उवरए, शीलवान् अश्रुतवान्-उपरतः, अविज्ञात- है, श्रुतवान नहीं है-उपरत है, धर्म का अविण्णायधम्मे। एस णं गोयमा! मए धर्माः। एष गौतम ! मया पुरुषः देशाराधकः विज्ञाता नहीं है। गौतम ! उस पुरुष को मैंने पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते। प्रज्ञप्तः। देशाराधक कहा है। तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसजाए से णं तत्र यः सः द्वितीयः पुरुषजातः सः पुरुष जो दूसरे प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान पुरिसे असीलवं सुयवं-अणुवरए, अशीलवान् श्रुतवान्-अनुपरतः, विज्ञात- नहीं है. श्रुतवान है-उपरत नहीं है. धर्म का विण्णायधम्मे। एस णं गोयमा! मए धर्मा। एष गौतम ! मया पुरुषः देशविराधकः विज्ञाता है। गौतम! उस पुरुष को मैंने पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते। प्रज्ञप्तः । देशविराधक कहा है। तत्थ णं जे से तच्चे पुरिसजाए से णं तत्र यः सः तृतीयः पुरुषजातः सः पुरुषः जो तीसरे प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान पुरिसे सीलवं सुयवं-उवरए, शीलवान् श्रुतवान्-उपरतः विज्ञातधर्मा। है श्रुतवान भी है-उपरत है। धर्म का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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