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श.६ : उ.१०:सू.१८८-१८२
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भगवई
संग्रहणी गाथा
संगहणी गाहा जीवाण य सुहं दुक्खं, जीवे जीवति तहेव भविया य। एगंतदुक्खं वेयण, अत्तमायाय केवली॥शा
जीवानां च सुखं दु:खं, जीवो जीवति तथैव भव्याश्च। एकान्तदु:खां वेदनाम्, आत्मनादाय केवली॥१॥
संग्रहणी गाथा जीवों का सुख और दुःख, जीव और जीना, भवसिद्धिक, एकान्त दु:खमय वेदना, आत्मा से आहार ग्रहण का विषय और केवली का जानना-देखनादसवें उद्देशक में प्रतिपादित विषय ये हैं।
१८९. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
१८९. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है।
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