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भगवई
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श.६ : उ.७: सू.१३३,१३४
हरिवर्ष-रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के ८ बालाग्र = हैमवत्-हैरण्यवत् के मनुष्यों का एक बालाग्र हैमवत्-हैरण्यवत् के मनुष्यों के ८ बालाग्र = पूर्वविदेह-अपरविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र
पूर्वविदेह-अपरविदेह मनुष्यों के ८ बालाग्र = भरत ऐवत के मनुष्यों का एक बालाग्र भरत-ऐरवत मनुष्यों के ८ बालाग्र = एक लिक्षा
भरत-ऐश्वत के मनुष्यों का ८ बालाग्र = एक लिक्षा ८ लिक्षा = एक यूका
८ लिक्षा = एक यूका ८ यूका = एक यवमध्य
८ यूका = एक यवमध्य ८ यवमध्य = एक अंगुल
८ यवमध्य = एक उत्सेध अंगुल ६ अंगुल = एक पाद
६ अंगुल = एक पाद १२ अंगुल = एक वितस्ति
१२ अंगुल = एक वितस्ति २४ अंगुल = एक रत्नि
२४ अंगुल = एक रत्नि ४८ अंगुल = एक कुक्षि
४८ अंगुल = एक कुक्षि ९६ अंगुल = एक दंड , धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मुसल ९६ अंगुल = एक दंड , धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मुसल २,००० धनुष = एक गव्यूत
२,००० धनुष = एक गव्यूत ४ गव्यूत = एक योजन
४ गव्यूत = एक योजन ___एक पल्य जो एक योजन लम्बा, चौड़ा व एक योजन ऊंचा, वह आवलिका : जघन्य-युक्त असंख्यात समयों की एक आवलिका एक से सात दिन के शिशु के केशों से भरा हुआ है। सौ-सौ वर्ष से एक-एक होती है। जघन्य-युक्त असंख्यात का मान जघन्य-परीत-असंख्यात को केश निकालने पर वह पल्य खाली हो, उतना काल एक व्यावहारिक पल्योपम जघन्य-परीत-असंख्यात से अभ्यास गुणित करने पर आता है। कहलाता है। पल्य की विस्तृत चर्चा के लिए अणुओगदाराई द्रष्टव्य है। प्राण (उच्छ्वास-नि:श्वास) : ४४४६ ३७७३ आवलिकाओं अभयदेवसूरि ने भी व्यावहारिक और सूक्ष्म पल्योपम की चर्चा की है। का एक प्राण होता है। निरोगी, बलवान्, युवक पुरुष के एक उच्छ्वास
विश्वप्रहेलिका' में कालमान का तुलनात्मक अध्ययन किया नि:श्वास की क्रिया में लगने वाला काल १ प्राण है। गया है
संख्यात काल-मान कोष्ठक
१ समय काल का सूक्ष्मतम अंश जघन्य-युक्त असंख्य समय - १ आवलिका
४४४६ ३४७६
१ अडड १अववांग १ अवव १ हूहूकांग
आवलिका प्राण = स्तोक - लव घड़ी मुहूर्त अहोरात्र - मास = वर्ष = पूर्वांग =
१प्राण १स्तोक १लव १घड़ी १ मुहूर्त (=४८ मिनट) १ अहोरात्र १ मास १ वर्ष १ पूर्वांग १ पूर्व १ त्रुटितांग
त्रुटित १अडडांग
अडडांग = अडड = अववांग = अवव = हूहूकांग = हूहूक उत्पलांग = उत्पल = पद्मांग = पद्म = नलिनांग = नलिन = अर्थनिपुरांग =
८४०००००
१ उत्पलांग १उत्पल १ पांग १ पद्म १ नलिनांग १ नलिन १ अर्थनिपुरांग १ अर्थनिपुर
पूर्व
त्रुटितांग = त्रुटित =
१. लेखाक-मुनि श्री महेद्र कुमारजी 'द्वितीय',प्र. झवेरी प्रकाशन, बंबई, १९६८-पृ. २४२-२५२
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