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________________ श.६ : उ.७: सू.१३३,१३४ २९० भगवई का कालमान इक्कीस हजार वर्ष है। ६. दु:षमदु:षमा का कालमान इक्कीस हजार वर्ष हैं। दूसम-सुसमा ५. एक्कवीसं वाससहस्साई. सुषमा ५. एकविंशति: वर्ष सहस्राणि काल: कालो दूसमा ६. एक्कवीसं वाससहस्साई दुःषमा ६. एकविंशतिः वर्षसहस्राणि काल: कालो दूसम-दूसमा। दु:षम-दुषमा। पुणरवि उस्सप्पिणीए १. एक्कवीसं वाससह- पुनरपि उत्सर्पिण्याम्---१. एकविंशतिः स्साई कालो दूसम-दूसमा २. एक्कवीसं वर्षसहस्राणि कालः दु:षम- दु:षमा वाससहस्साई कालो दूसमा ३. एगा साग- २.एक-विंशतिः वर्षसहस्राणि काल: रोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं दु:षमा ३.एका सागरोपमकोटिकोटिः द्विऊणिया कालो दूसम-सुसमा ४.दो सागरो- चत्वारिंशता वर्षसहस्रैरूनिता काल: वमकोडाकोडीओ कालो सुसम-दूसमा दुःषम-सुषमा ४. द्वे सागरोपमकोटिकोटी ५. तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो काल: सुषम-दु:षमा ५. तिस्रः सागरोपमसुसमा ६. चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कोटिकोट्य: काल: सुषमा ६.चतस्रः कालो सुसम-सुसमा। सागरोपमकोटिकोट्य: काल: सुषम सुषमा। दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओस- दश सागरोपमकोटिकोट्य: काल: अवसप्पिणी, दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो र्पिणी, दश सागरोपमकोटिकोट्य: काल: उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ उत्सर्पिणी, विंशति: सागरोपमकोटिको- कालो ओसप्पिणी उस्सप्पिणी य॥ ट्य: काल: अवसर्पिणी उत्सर्पिणी चा पुन: उत्सर्पिणी में-१. दु:षम-दु:षमा का कालमान इक्कीस हजार वर्ष हैं। २. दु:षमा का कालमान इक्कीस हजार वर्ष हैं। ३. दु:षम-सुषमा का कालमान बयालीस हजार वर्ष न्यून एक सागरोपम कोड़ाकोड़ि है। ४. सुषम-दुःषमा का कालमान दो सागरोपम कोड़ाकोड़ि है। ५. सुषमा का कालमान तीन सागरोपम कोडाकोड़ि है। ६. सुषम-सुषमा का कालमान चार सागरोपम कोड़ाकोड़ि है। अवसर्पिणी का कालमान दस सागरोपम कोडाकोड़ि है। उत्सर्पिणी का कालमान दस सागरोपम कोड़ाकोड़ि है। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी दोनों का समन्वित कालमान बीस सागरोपम कोड़ाकोड़ि है। भाष्य १. सूत्र १३३,१३४ सकता। विस्तृत विवरण के लिए अणुओगदाराई, सू. ३९६-३९१ द्रष्टव्य शीर्षप्रहेलिका तक का काल गणित का विषय है-गणितप्रमेय है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि शस्त्र से छेदन-भेदन नहीं किया जा है। इससे अधिक काल का ज्ञान उपमा के द्वारा किया जाता है। इसलिए उसे सकता—यह लक्षण नैश्चयिक परमाणु में भी घटित होता है। यहां प्रमाण के 'औपमिक काल' कहा जाता है। औपमिक काल के दो प्रकार हैं—पल्योपम अधिकार में व्यावहारिक परमाणु विवक्षित है। और सागरोपम। औपमिक काल का प्रारम्भ-बिन्दु परमाणु है। वह दो प्रकार प्रस्तुत आगम में 'अणंताणं परमाणुपोग्गलाणं' पाठ है। और का होता है—सूक्ष्म परमाणु और व्यावहारिक परमाणु। प्रस्तुत प्रसंग में सूक्ष्म अणुओगदाराई में 'अणंताणं ववहारियपरमाणुपोग्गलाणं' पाठ है। परमाणु विवक्षित नहीं है। अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं से एक व्यावहारिक परमाणु अभयदेवसूरि ने परमाणु का अर्थ 'व्यावहारिक परमाणु' किया है। भगवती निष्पन्न होता है। उसका सुतीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा छेदन-भेदन नहीं किया जा और अणुओगदाराइं की तुलना यहां तालिका में दी जा रही है भगवती६/१३४ अनन्त परमाणुपुद्गलो की एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका ८ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका = एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका ८ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका = एक ऊर्ध्वरेणु ८ ऊर्ध्वरेणु = एक त्रसरेणु ८ त्रसरेणु = एक रथरेणु ८ स्थरेणु = देवकुरु- उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र इसी प्रकार-हरिवर्ष-रम्यक्-हैमवत हैरण्यवत -पूर्वविदेह-अपरविदेह' । के मनुष्यों का ८ बालाग्र = एक लिक्षा __ अणुओगदाराई सू. ३९९, ४०० अनन्त व्यावहारिक परमाणुपुद्गलों की एक उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका ८ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका = एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका ८ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका - एक ऊर्ध्वरेणु ८ ऊर्ध्वरेणु = एक त्रसरेणु ८ त्रसरेणु = एक रथरेणु ८ रथरेणु = देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों के ८ बालाग्र = हरिवर्ष - रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का एक बालान १. भ.वृ. ६/१३४-यद्यपि च नैश्चयिकपरमाणोरपीदमेव लक्षण तथाऽपीह प्रमाणा- धिकाराद्व्यावहारिकपरमाणुलक्षणमिदमवसेयम् । २.अणु.सू. ४१८-४३२ । भ, मूलपाठ में एरण्णवयाणं है, पर ठाणं और अनु.में हेरण्णवयाणं है। ३. भ. मूलपाठ में अपरविदेह नहीं है, छूट गया है। Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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