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________________ श. ६:३७: सु. १२९-१३२ गोलाकार घेरा । पल्य (पल्ल) इसके संस्कृत रूप दो हो सकते हैं--पल्ल और पल्या पल्य का अर्थ अनाज डालने का बोरा और पल्ल का अर्थ धान्य रखने का बड़ा कोठा, बडा धान्यागार है। प्राकृत का पाठ 'पल्ल' है । व्याख्याकारों ने पल्ल का संस्कृत रूप 'पल्य' किया है। आगम में पल्ल का माप एक योजन बतलाया गया है। इस विशाल 'पल्ल' की संगति पल्य के साथ नहीं बैठती। मथान (मंच ) अनाज को रखने के लिए बनाया हुआ मचाना माल (माल) दूसरी मंजिल पर बना हुआ पर। गाहा कोष्ठ ( कोड) कोठा, अनाज रखने के लिए बनाया गया - १. हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरु किस्स जंतुणो । एगे ऊसास - नीसासे, एस पाणु ति वच्च ||१| सतपाई से धोबे, सत्र घोवाई से लवे। लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुते विवाहिए ||२॥ तिष्णि सहस्सा सत्त य, सयाइं तेवत्तरिं च ऊसासा । एस मुहुत्ती दिडो, सव्वेहिं अनंतनाणीहिं ॥३॥ २८६ एएवं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहता अहोरतो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मास उड़, तिणि उडू अयणे, दो अयणा संवछरे, पंच संवच्छराई जुगे, बीस जुगाई वासस, दस वाससयाई बाससहस्सं सवं 1 गणना-काल-पदं गणना-काल-पदम् १३२. एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवतिया एकैकस्य भदन्त ! मुहूर्त्तस्य कियन्तः उच्छूऊसासद्धा वियाहिया ? वासाद्धा व्याहृता: ? गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा आवलिय त्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो । गौतम ! असंख्येयानां समयानां समुदयसमिति समागमेन सा एका आवलिका इति प्रोच्यते, संख्येया: आवलिका: उच्छूवासः, संख्येया: आवलिकाः निःश्वासः । गाथा: (क) आप्टे पल्यं - A sack for corn. पल्लः -- A large granary. (ख) भ.वृ. ६ / १२९ इह पल्यो वंशादिमयो धान्याधारविशेषः । Jain Education International डाल कर (आगुत्ताणं) संरक्षित अवलिप्त— द्वार - देश पर गोवर आदि से लीपा हुआ लिप्त सर्वतः गोवर आदि से लीपा हुआ पिडित ढकन दिया हुआ - मुद्रित - मुद्रा — मोहर लगा हुआ लांछित - चिह्नित योनि - अंकुर उत्पत्ति का हेतु उत्पादक शक्ति अबीज जिसकी उत्पादक शक्ति नष्ट हो गई हो जो बीज बोने पर भी अंकुर उत्पन्न न करे योनि - विच्छेद- उत्पादक शक्ति का नाश । हृष्टस्याऽनवकल्यस्य, निरुपक्लिष्टस्य जन्तोः । एक उच्छ्वास - नि:श्वासः, एष प्राण इति प्रोच्यते ॥ १ ॥ सप्त प्राणाः स स्तोक:, सप्त स्तोकाः स लव: ! लवानां सप्तसप्ततिः, एष मुहूर्तो व्याहतः || २ || त्रीणि सहस्राणि सप्त च, शतानि त्रिसप्ततिश्वोच्छ्वासाः। एष मुहूर्तो दृष्टः, सर्वरनन्तज्ञानिभिः ॥ ३॥ एतेन मुहूर्तप्रमाणेन त्रिंशन्मुहूर्त: अहोरात्रः, पञ्चदश अहोरात्रा: पक्ष, द्वौ पक्षौ मासः, द्वौ मासौ ऋतु, त्रयः ऋतवः अयनं, द्वे अयने संवत्सरः, पञ्चे संवत्सराः दुर्गा, विंशतिः युगानि वर्षशतम्, दश वर्षशतानि वर्षसहस्रं, भगवई २. भ. बृ. ६ / १२८ – मञ्चमालयोर्भेद:"अकुडो होइ मंचो, मालो य घरोवरिं होंति । For Private & Personal Use Only गणना-काल-पद १३२. भन्ते ! प्रत्येक मुहूर्त्त का उच्छ्वास - काल कितना होता है? गौतम असंख्य समयों के समुदय, समिति और समागम से एक आवलिका होती है। देव आबलिकाओं का एक उच्छ्वास होता है। संख्येय आवलिकाओं का एक नि:श्वास होता है। गाथाएं हृष्ट, नीरोग और मानसिक क्लेश से मुक्त प्राणी का एक उच्छ्वास- नि:श्वास प्राण कहलाता है, सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और सतहत्तर लबों का एक मुहूर्त होता है। तीन हजार सात सौ तिहत्तर (३७७३) उच्छ्वासों का एक मूहूर्त्त होता है- -यह सब अनन्त ज्ञानियों द्वारा दृष्ट है। इस मुहूर्त - प्रमाण से तीस मुहूर्त का एक दिन-रात, पंद्रह दिन-रात का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग, बीस युग की एक शताब्दी, दस शताब्दियों की एक सहस्राब्दी, सौ सहस्त्राब्दियों का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांगों का एक पूर्व होता है। इसी प्रकार (पूर्वोक्त क्रम से) त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अब कांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्यांग पद्म नलिनांग, नलिन, अर्धनिकुरांग, अर्धनिकुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, , www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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