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________________ श. ६ : उ. ४ : स. ५४-६३ हारमा, सरीर अपज्जतीए, इंदिय अपज्ज त्तीए, आणापाण- अपज्जत्तीए जीवेगिंदिववज्जो तियभंगो, नेरइय-देवं मनुएहिं छब्धंगा, भासा पण अपन्नत्तीए जीवादिओ तियभंगो, नेरइय- देव मणुएहिं तब्भंगा। - संगहणी गाहा सपदेसाहारग भविय सण्णि-लेस्सा-दिवि संजय कसाए नाणे जोगुवओगे, वेदे य सरीर पज्जत्ती ॥ १ ॥ - २५८ - शरीर अपर्याप्ती, इन्द्रिय- अपर्याप्ती, आनापान- अपर्याप्तौ जीवैकेन्द्रियवर्ज: त्रिकभन्न:, नैरविक देव-मनुजेषु षड्भवाः, भाषामनः अपर्याप्तौ जीवादिक: त्रिकभवः, नैरदिक देव मनुजेषु पद्मन्त्राः। संग्रहणी गाथा सप्रदेशाहारक- भविक - संज्ञि लेश्या दृष्टि संयत-कषायाः । ज्ञानं योगोपयोगी वेदश्च शरीर पर्याप्ती ॥ १ ॥ भाष्य १. सूत्र ५४ ६३ २ सप्रदेश और अप्रदेश सापेक्ष शब्द हैं। इस पर अनेक नयों से विमर्श किया गया है। प्रस्तुत आलापक में काल की दृष्टि से सप्रदेश- अप्रदेश का विमर्श किया गया है, जिसे उत्पन्न हुए एक समय बीता है, वह अप्रदेश और जिसकी स्थिति दो तथा उससे अधिक समय की है वह सप्रदेश कहलाता है।' जीव और नैरयिक के उदाहरण से इस विषय को समझाया गया है। जीव अनादि होने के कारण अनन्त समय की स्थिति वाला है; इसलिए वह नियमत: सप्रदेश है। उसे अनन्त भागों में विभक्त किया जा सकता है। इस प्रकार काल की अपेक्षा उसका व्यक्तित्व अनन्त खण्ड वाला हो जाता है। इसका समर्थन उत्तरायणाणि के इस सूत्र से होता है संतई पप्पऽनाईया।' ३ नैरयिक, मनुष्य यावत् सिद्ध सप्रदेश व अप्रदेश दोनों होते हैं। जो प्रथम समय में उत्पन्न हैं, वे अप्रदेश होते हैं। जिनका उत्पत्तिकाल दो समय तथा उससे अधिक समय की स्थिति का हो, वे सप्रदेश होते हैं। Jain Education International अनेक जीवों की अपेक्षा विचार करने पर समुच्चय में जीव नियमतः सप्रदेश हैं। बहुवचन में नैरयिक के तीन विकल्प बनते हैं: १. उपपात के विरह काल में पूर्वोत्पन्न सभी नैरयिक सप्रदेश होते हैं। २. पूर्वोत्पन्न नैरयिकों के मध्य एक नैरयिक उत्पन्न होता है, उस स्थिति में अनेक सप्रदेश और एक अप्रदेश होता है। ३. पूर्वोत्पन्न नैरयिकों के मध्य अनेक नैरयिक एक साथ उत्पन्न होते हैं, तब तीसरा विकल्प बनता है— अनेक सप्रदेश और अनेक अप्रदेश। एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर शेष सभी जीवों तथा सिद्धों के वे तीन-तीन विकल्प होते हैं। एकेन्द्रिय जीव सप्रदेश व अप्रदेश दोनों होते हैं १. द्रष्टव्य भ. ५/२०१२०७ का भाष्या २. भ. वृ. ६ / ५४ - यो ह्येकसमयस्थितिः सोऽप्रदेश: द्वयादिसमयस्थितिस्तु सप्रदेश, इह चानया गाथया भावना कार्या भगवई अपर्याप्त वाले जीव अनाहारक जीव की भांति वक्तव्य हैं। शरीर अपर्याप्त वाले, इन्द्रिय अपर्याप्त और आनापान अपर्याप्ति वाले जीवों में जीव तथा एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग होते हैं। भाषा और मनअपर्याप्ति वाले जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग होते हैं। संग्रहणी गाथा वे १. जिनका उत्पत्तिकाल दो तथा उससे अधिक समय का हो गया, सब सप्रदेश होते हैं। २. एकेन्द्रिय में प्रति समय अनेक जीव उत्पन्न होते रहते हैं, इसलिए वे अप्रदेश भी हैं। प्रदेश आहारक, भव्य, संज्ञी, लेश्या, दृष्टि, संवत, " कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति — उक्त दस सूत्रों (५४-६३) में ये विषय वर्णित हैं। बहुवचन में छह भंग भी बनते हैं असंज्ञी से उत्पन्न बहुवचनान्त नारक के छह विकल्प इस प्रकार बनते हैं— १. उपपात के विरह - काल में पूर्वोत्पन्न सभी नैरयिक सप्रदेश होते हैं। २. कुछ जीव एक साथ उत्पन्न हुए, उत्पत्ति के प्रथम समय में वे सब अप्रदेश होते हैं। ३. उत्तर. ३६ / ७९/ ४. पण्ण. ६ / ६२, ६३१ ३. असंज्ञी से नरक में उत्पन्न होने वालों में द्वितीय आदि समयवर्ती एक जीव सप्रदेश तथा प्रथम समयवर्ती एक जीव अप्रदेश होता है। ४. असंज्ञी से नरक में उत्पन्न होने वालों में द्वितीय आदि समयवर्ती एक जीव सप्रदेश है, प्रथम समयवर्ती अनेक जीव अप्रदेश हैं। ५. असंज्ञी से नरक में उत्पन्न होने वालों में द्वितीय आदि समयवर्ती अनेक जीव सप्रदेश एवं प्रथम समयवर्ती एक जीव अप्रदेश हैं। ६. असंज्ञी से नरक में उत्पन्न होने वाले जीवों में द्वितीय आदि समयवर्ती अनेक जीव सप्रदेश एवं प्रथम समयवर्ती अनेक जीव अप्रदेश हैं। शब्द-विमर्श सप्रदेश – सावयव, सविभाग अप्रदेश - निरवयव, अविभाग For Private & Personal Use Only - जो जस्स पढमसमय बट्टति भावस्स सो उ अपदेसो । अण्णम्मि वट्टमाणो कालाएसेण सपएसो www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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