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भगवई
नाणी व बंध
एवं वेदणिज्जवन्जाओ सत वि। वेदणिज्जं हेडिल्ला चत्तारि बंधति, केवलनाणी भवणाए||
४८. नाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सागारोवडते बंध ? अणागारोवडले बंध ?
गोमा ! असु वि भयणाए ।
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केवलज्ञानी न बध्नाति ।
४६. नाणावरणिज्वं णं भंते । कम्मं किं मइअण्णाणी बंध? सुयअण्णाणी बंधइ ? विभंगनाणी बंधइ ? गोयमा आउगवन्याओ सत्त वि बंधति, गौतम! आयुष्कवर्णानि सप्त अपि वनआउगं भयणाए । न्ति, आयुष्कं भजनवा!
५०. नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं सुहुमे बंध ? बादरे बंध? नोहुमे नोबादरे बंध ?
एवं वेदनीयवर्णानि सप्त अपि वेदनीयम् अधस्तनाः चत्वारः बध्नन्ति, केवलज्ञानी
भजनया।
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ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं मत्यज्ञानी बध्नाति ? श्रुताज्ञानी बध्नाति ? विभङ्गज्ञानी बध्नाति ?
४७. नाणावरणिज्जं णं भंते । कम्मं किं मणजोगी बंधइ ? वइजोगी बंधइ ? कायजोगी बंध ? अजोगी बंध? गोयमा ! हेडिल्ला तिण्णि भयणाए, अजोगी गौतम ! अधस्तनाः त्रयः भजनया, अयोगी न बघा न बध्नाति । एवं वेदणिज्जवज्जाओ सत्त वि। वेदणिज्जं डिल्ला बंघति, अजोगी न पड़ा।
ज्ञानावरणीयं भदन्त कर्म किं मनोयोगी बध्नाति ? वाग्योगी बध्नाति ? काययोगी बध्नाति ? अयोगी बध्नाति ?
एवं वेदनीयवर्णानि सप्त अपि । वेदनीयम् अधस्तनाः बध्नन्ति, अयोगी न बध्नाति ।
४९. नाणावर णिज्जं मं भंते! कम्मं किं आहारए ज्ञानावरणीयं भदन्त । कर्म किम् आहारकः बध्नाति ? अनाहारक: बध्नाति ? गौतम ! द्वौ अपि भजनया। एवं वेदनीयायुष्कवनां षण्णाम् वेदनीयम् आहारकः बध्नाति, अनाहारक: भजनया । आयुष्कम् आहारकः भजनया, अनाहारक: नबध्नाति
बंध ? अणाहारए बधं ? गोयमा ! दो वि भयणाए । एवं वेदणिज्जाउगवाणं छह वेदणिज्जं आहारए बंधइ, अणाहारए भयणाए । आउए आहारए भयणाए, अणाहारए न बंध ।।
ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं साकारोपयुक्त: बध्नाति ? अनाकारोपयुक्तः बध्नाति ?
गौतम ! अष्टसु अपि भजनया।
ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं सूक्ष्मः बध्नाति? बादर: बध्नाति ? नोसूक्ष्मः नोबादरः
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श. ६ : उ. ३ : सु. ४५-५०
ज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनः पर्यवज्ञानी स्यात् ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते हैं, स्यात् नहीं करते। केवलज्ञानी बंध नहीं करता।.
इसी प्रकार वेदनीय कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म- प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । वेदनीय कर्म का बन्ध प्रथम चारों करते हैं । केवलज्ञानी स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता।
४६. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या मति अज्ञानी करता है? श्रुत- अज्ञानी करता है? विभंगज्ञानी करता है ?
गीतम! आयुष्यकर्म को छोड़ कर सातों ही कर्मप्रकृतियों का बन्ध वे करते हैं, आयुष्य कर्म का बंध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते।
४७. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या मनयोगी करता है? वचनयोगी करता है? काययोगी करता है? अयोगी करता है?
गौतम ! प्रथम तीनों स्यात् ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते हैं, स्यात् नहीं करते। अयोगी नहीं करता । इसी प्रकार वेदनीय को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता वेदनीय कर्म का प्रथम तीनों करते हैं, अयोगी नहीं करता।
४८. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या साकार उपयोग वाला करता है? अनाकार उपयोग वाला करता है?
गौतम! आठों ही कर्म-प्रकृतियों का बंध वे स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते।
४९. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या आहारक करता है? अनाहारक करता है?
गौतम ! दोनों ही स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। इसी प्रकार वेदनीय और आयुष्य को छोड़ कर छह कर्म प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता वेदनीय कर्म का बंध आहारक करता है। अनाहारक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। आयुष्य कर्म का बंध आहारक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। अनाहारक नहीं करता।
५०. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या सूक्ष्म करता है ? बादर करता है? नोसूक्ष्म-नोबादर करता है?
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