________________
बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१८. रायगिह नगरं जाव एवं वयासी-
आहारुद्देसओ जो पण्णवणाए सो सन्वो निरवसेसो नेयव्वो॥
राजगृह नगरं यावद् एवमवादीद्-आहारोद्देशक: य: प्रज्ञापनायां स सर्वः निरवशेष: नेतव्यः।
१८. राजगृह नाम का नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-पण्णवणा का जो आहार उद्देशक' है, वह यहां अविकल रूप से ज्ञातव्य है। भन्ते ! नैरयिक जीव क्या सचित्त आहार वाले हैं, अचित्त आहार वाले हैं अथवा मिश्र आहार वाले
भाष्य
१. आहार-उद्देशक
नहीं है। केवल आहारोद्देशक-इतना संकेत है। आहार-पद के दो उद्देशक पण्णवणा का अट्ठाईसवां पद आहार-पद है। उसमें जीव किस हैं। पहले उद्देशक का विषय आहार है। दूसरे उद्देशक का विषय आहारक प्रकार का—सचित्त, अचित्त या मिश्र आहार करते हैं? उनमें आहार की और अनाहारक है। यहां 'आहार' पद का प्रथम उद्देशक ही वक्तव्य है। इच्छा उत्पन्न होती है? वे कितनी कालावधि के पश्चात् आहार करते हैं? भगवती के प्रथम शतक में प्रथम आहारोद्देशक' का उल्लेख भी मिलता आदि-आदि विषयों का विमर्श किया गया है।
है-'आहारो वि-जहा पण्णवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा आहारुद्देसओ—यहां पण्णवणा के प्रथम उद्देशक का उल्लेख भाणियन्वो'।
१९. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति।।
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
१९. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है।
१. भ. १/३२॥
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org