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________________ श.५: उ.८: सू.२०२-२०३ २०६ भगवई आर्य ! द्रव्य की अपेक्षा से सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं? आर्य ! क्षेत्र की अपेक्षा से सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं? आर्य ! काल की अपेक्षा से सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य ओर सप्रदेश हैं, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश दव्वादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा द्रव्यादेशेन आर्य ! सर्वपुद्गलाः सार्धाः समज्झा सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा समध्या: सप्रदेशाः, नो अनर्धा; अमध्या: अपएसा? अप्रदेशा:? खेत्तादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा क्षेत्रादेशेन आर्य ! सर्वपुद्गलाः सार्दाः समज्झा सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा समध्या: सप्रदेशा:, नो अनर्धः अमध्या: अपएसा? अप्रदेशा:? कालादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा कालादेशेन आर्य ! सर्वपुद्गला: सार्द्धाः समज्झा सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा समध्या: सप्रदेशाः, नो अनर्धाः अमध्या: अपएसा? अप्रदेशा:? भावादेसेणं अज्जो! सव्वपोग्गला सअड्ढा भावादेशेन आर्य ! सर्वपुद्गला: सार्द्धाः । समज्झा सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा समध्या: सप्रदेशाः, नो अनाः अमध्या: अपएसा? अप्रदेशा:? तए ण से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं ततः स नारदपुत्र: अनगार: निर्ग्रन्थीपुत्रम् अणगारं एवं वयासी—दव्वादेसेण वि मे अनगारम् एवमवादीद्-द्रव्यादेशेनापि मे अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा आर्य ! सर्वपुद्गलाः सार्धा: समध्या: ससपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपएसा, प्रदेशाः, नो अनर्धा: अमध्या: अप्रदेशाः। खेत्तादेसेण वि, कालादेसेण वि, भावादेसेण क्षेत्रादेशेनापि, कालादेशेनापि, भावादेशे- नापि। नहीं हैं? आर्य ! भाव की अपेक्षा से सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं? अनगार नारदपुत्र ने अनगार निर्ग्रन्थीपुत्र से इस प्रकार कह्य-आर्य! मेरे मत में द्रव्य की अपेक्षा भी सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं। इसी प्रकार क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा भी सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश है, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं। वि॥ २०३. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं ततः स निर्ग्रन्थीपुत्र: अनगार: नारदपुत्रम् अणगारं एवं वयासी-जइ णं अज्जो ! अनगारम् एवमवादीद्----यदि आर्य ! दन्वादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा द्रव्यादेशेन सर्वपुद्गला: सार्द्धाः समध्या: सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपएसा, एवं सप्रदेशाः, नो अनर्धा: अमध्या: अप्रदेशा:, ते परमाणुपोग्गले विसअड्ढे समज्झे सप- एवं ते परमाणुपुद्गलोऽपि सार्द्धः समध्य: एसे, नो अणड्ढे अमज्झे अपएसे। सप्रदेश:, नो अनर्द्ध: अमध्य: अप्रदेशः। जइणं अज्जो! खेत्तादेसेण वि सव्वपोग्गला यदि आर्य ! क्षेत्रादेशेनापि सर्वपुद्गला: सअड्ढा समज्झा सपएसा, एवं ते एग- सार्द्धाः समध्या: सप्रदेशाः, एवं ते एकपएसोगाढे वि पोग्गले सअड्ढे समज्झे प्रदेशावगाढोऽपि पुद्गल: सार्द्धः समध्य: सपएसे। सप्रदेश:। २०३. अनगार निर्ग्रन्थीपुत्र ने अनगार नारदपुत्र से इस प्रकार कहा–आर्य ! यदि द्रव्य की अपेक्षा से सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं- अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो इस प्रकार तुम्हारे मत में परमाणु-पुद्गल भी स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश है, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं है। आर्य ! यदि क्षेत्र की अपेक्षा से भी सब पुद्गल स-अर्ध, समध्य ओर सप्रदेश हैं, (अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं) तो इस प्रकार तुम्हारे मत में एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश है, (अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं है।) आर्य! यदि काल की अपेक्षा से सब पुद्गल सअर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं (अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं), तो इस प्रकार तुम्हारे मत में एक समय की स्थिति वाला पुद्गल भी स-अर्ध, समध्य और सप्रदेश है, (अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं जइ णं अज्जो ! कालादेसेणं सव्वपोग्गला यदि आर्य! कालादेशेन सर्वपुद्गला: सार्द्धाः सअड्ढा समज्झा सपएसा, एवं ते एग- समध्या: सप्रदेश:, एवं ते एकसमयस्थितिसमयद्वितीए वि पोग्गले सअड्ढे समज्झे कोऽपि पुद्गल: सार्द्धः समध्य: सप्रदेशः। सपएसे। जइ णं अज्जो ! भावादेसेणं सव्वपोग्गला यदि आर्य ! भावादेशेन सर्वपुद्गला: सार्द्धाः सअड्ढा समज्झा सपएसा, एवं ते एग- समध्या: सप्रदेशाः, एवं ते एकगुणकाल- गुणकालए वि पोग्गले सअड्ढे समझे कोऽपि पुद्गल: सार्द्धः समध्य: सप्रदेशः। सपएसे। आर्य ! यदि भाव की अपेक्षा से सब पुद्गल सअर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, (अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं) तो इस प्रकार तुम्हारे मत में एक कृष्ण गुण वाला पुद्गल भी स-अर्ध, समध्य और Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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