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________________ श.५ : आमुख १२६ भगवई परमाणुवाद के प्रवर्तक के रूप में भारतीय दार्शनिकों में कणाद और पाश्चात्य दार्शनिकों में डेमोक्रीटस का नाम उल्लिखित होता है। डेमोक्रीटस का अस्तित्वकाल ईसा पूर्व ४६०-३७० माना जाता है। कणाद के वैशेषिक सूत्रों की रचना का समय ईसा की प्रथम शताब्दी माना जाता है। भगवान महावीर का अस्तित्वकाल ईसा पूर्व ५९९-५२७ है। महावीर का परमाणुवाद अथवा पुद्गलवाद कणाद और डेमोक्रीटस से पूर्ववर्ती है, किन्तु दर्शन-साहित्य के लेखकों ने इस सच्चाई की उपेक्षा की। इसका हेतु पक्षपातपूर्ण दृष्टि है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसका मूल हेतु जैन साहित्य की अनुपलब्धि अथवा उसका अध्ययन न होना ही है। परमाणु अविभाज्य है- इस सिद्धान्त में जैनदर्शन और वैशेषिक दर्शन एकमत हैं। परमाणु निरवयव है— इस विषय में उन दोनों में मतभेद है। जैन दर्शन में द्रव्य परमाणु को निरवयव और भाव परमाणु को सावयव माना गया है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार परमाणु निरवयव होता है। वैशेषिक दर्शन में परमाणु के चार वर्गीकरण मिलते हैं. पार्थिव, जलीय, तैजस और वायवीय । जैन दर्शन में पुद्गल-स्कन्ध के आठ वर्गीकरण उपलब्ध हैं -१. औदारिक वर्गणा २. वैक्रिय वर्गणा ३. आहारक वर्गणा ४. तैजस वर्गणा ५. कार्मण वर्गणा ६. मनो वर्गणा ७. वचन वर्गणा ८. श्वासोच्छ्वास वर्गण| परमाणुवाद पुद्गलवाद का एक भाग है। जैन दर्शन में जीव और पुद्गल के संबंध का व्यापक विवेचन है।' जीव बढ़ते हैं, घटते हैं अथवा जितने हैं, उतने ही रहते हैं—यह मनुष्य की स्वाभाविक जिज्ञासा रही है। भगवान महावीर ने इस जिज्ञासा का समाधान विभज्यवादी दृष्टिकोण से किया है। जैनदर्शन में अंधकार को पौद्गलिक माना है। उत्तरवर्ती दार्शनिक सहित्य में यह विषय चर्चित रहा है। अंधकार प्रकाश का अभाव है। जैन दार्शनिक इससे सहमत नहीं रहे। उन्होंने अंधकार के पौद्गलिकत्व का युक्तिपूर्ण समर्थन किया। भगवान महावीर के समय में भी भगवान पार्श्व का शासन चल रहा था। भगवान महावीर के तीर्थ-प्रवर्तन के पश्चात् समय-समय पर पापित्यीय (पार्श्व-शासन के मुनि) महावीर अथवा उनके शिष्यों के पास आते रहते थे। भगवान महावीर भगवान पार्श्व के प्रति बहुत सम्मान प्रदर्शित करते थे। भगवान ने पापित्यीय स्थविरों के सम्मुख अर्हत् पार्श्व द्वारा सम्मत लोकविषयक अवधारणा प्रस्तुत की और उसे अपना समर्थन दिया। प्रस्तुत शतक दस उद्देशकों में विभक्त है। प्रत्येक उद्देशक मननीय सामग्री से परिपूर्ण है। १. स्याद्वादमंजरी, पृ. ३३०-यूई (Ui) वैशेषिक दर्शन की उत्पत्ति बुद्ध के समय और कम से कम ईसा की प्रथम शताब्दी के अन्त में वैशेषिक सूत्रों की रचना का समय मानते हैं। २. भ. ५/२०८-२३३॥ ३. इसका कुछ विवेचन भ. १/३१२, ३१३ में हो चुका है। ४.भ.५/२३७, २३८॥ ५. वै. सू. ९५/२/१९-द्रव्यगुणकर्मनिष्पत्तिवैधादभावस्तमः। ६. भ. ५/२५४,२५५/ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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