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भगवई
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श.४: उ.१-४ : सू.४,५
दस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सुमणे नाम जस्य सोमस्य महाराजस्य सुमनो नाम महा- महाविमाणे पण्णत्ते अद्धतेरसजोयणस- विमानं प्रज्ञप्तम् अर्द्धत्रयोदशयोजनशतयसहस्साई, जहा सक्कस्स वत्तवव्या तइय- सहस्राणि, यथा शक्रस्य वक्तव्यता तृतीयशते सए तहा ईसाणस्स वि जाव अच्चणिया ईशानस्यापि यावद् अर्चनिका समाप्ता। समत्ता।।
महाविमान प्रज्ञप्त है। उसकी लम्बाई-चौडाई साढे बारह लाख योजन है। तीसरे शतक में शुक्र की जैसी वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता यावत् अर्चनिका तक ईशान की भी है।
५. चउण्ह वि लोगपालाण विमाणे-विमाणे चतुर्णामपि लोकपालानां विमाने-विमाने ५. चारों ही लोकपालों के प्रत्येक विमान का एकउद्देसओ चऊसु वि विमाणेसु चत्तारि उद्देसा उद्देशकः, चतुर्षु अपि विमानेषु चत्वारः एक उद्देशक अविकल रूप से ज्ञातव्य है, केवल अपरिसेसा, नवरं—ठिईए नाणत्तं- उद्देशाः अपरिशेषाः नवरं—स्थितौ नाना- उनकी स्थिति में नानात्व है--
त्वम्
संगहणी गाहा
संग्रहणी गाथा
आदि दुय तिभागूणा, पलिया धणयस्स होंति दो चेवा। दो सतिभागा वरुणे, पलियमहावच्चदेवाण॥१॥
आद्यौ द्वौ त्रिभागोनौ। पल्योपमौ धनदस्य भवतः दो चैव। द्वौ सत्रिभागो वरुणे, पल्योपमं यथापत्यदेवानाम्।।
संग्रहणी गाथा प्रथम दो लोकपालों की स्थिति एक तिहाई भाग कम दो पल्योपम की है। धनद (वेश्रवण) लोकपाल की स्थिति दो पल्योपम की है और वरुण की स्थिति एक तिहाई भाग अधिक दो पल्योपम (२.) की है। लोकपालों के पुत्र-रूप में पहचाने जाने वाले देवों की स्थिति एक पल्योपम की है।
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