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________________ चउत्थं सतं : चौथा शतक पढमो, बिइओ, तइयो, चउत्थो उद्देसो : पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद संगहणी गाहा चत्तारि विमाणे हिं चत्तारि य होंति रायहाणीहिं। नेरइए लेस्साहि य, दस उद्देसा चउत्थसए ॥१॥ संग्रहणी गाथा चत्वारो विमानैः चत्वारश्च भवन्ति राजधानीभिः। नैरयिको लेश्याभिश्च, दश उद्देशाश्चतुर्थशते।।१।। संग्रहणी गाथा चार विमान, चार राजधानियां, नैरयिक और लेश्या -चौथे शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-ईसाणस्स राजगृहे नगरे यावद् एवमवादीद् - ईशा- १. राजगृह नगर में भगवान गौतम भगवान महावीर की णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो कइ लोगपाला नस्य भदन्त! देवेन्द्रस्य देवराजस्य कति पर्युसराणा करते हुए इस प्रकार बोले-भंते! देवेन्द्र पण्णत्ता? लोकपालाः प्रज्ञप्ताः? देवराज ईशान के कितने लोकपाल प्रज्ञप्त हैं? गोयमा! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा गौतम! चत्वारः लोकपालाः प्रज्ञप्ताः, तद् गौतम! चार लोकपाल प्रज्ञप्त हैं, जैसे सोम, यम, -सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे॥ यथा-सोमः, यमः, वैश्रवणः, वरुणः। वैश्रवण और वरुण। भंते! इन लोकपालों के कितने विमान प्रज्ञप्त हैं? २. एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाणा एतेषां भदन्त! लोकपालानां कति विमा- पण्णता? नानि प्रज्ञप्तानि? गोयमा! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! चत्वारि विमानानि प्रज्ञप्तानि, तद् सुमणे, सव्वओभद्दे, वगू, सुवग्गू॥ यथा-सुमनः, सर्वतोभद्रः, वल्गु, सुव- गौतम! इनके चार विमान प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सवल्गु। भंते! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज सोम का सुमन नाम का महाविमान कहां प्रज्ञप्त है? पण्णते? ३. कहिणं भंते! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो कुत्र भदन्त! ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्स महारण्णो सुमणे नामं महाविमाणे सोमस्य महाराजस्य सुमन: नाम महाविमानं प्रज्ञप्तम् ? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स गौतम! जम्बूद्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः यावद् ईसाणे नामं कप्पे पण्णत्ते। तत्थ णं जाव पंच ईशानः नाम कल्पः प्रज्ञप्तः। तत्र यावत् पञ्च वडेंसया पण्णत्ता, तं जहा-अंकवडेंसए, अवतंसाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा-अंकावत- फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, रूववडेंसए, सकः, स्फटिकावतंसकः, रत्नावतंसकः, मझे ईसाणवडेंसए।। जातरूपावतंसकः। मध्ये ईशानावतंसकः। गौतम! जम्बूद्वीप दीप में मेरु पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रायः समतल और रमणीय भूभाग से ऊपर यावत् ईशान नाम का कल्प प्रज्ञप्त है। वहां पांच अवतंसक प्रज्ञप्त हैं, जैसे--अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक, जातरूपावतंसक और मध्य में ईशानावतंसक। ४. तस्स णं ईसाणवडेंसयस्स महाविमाणस्स तस्य ईशानावतंसकस्य महाविमानस्य ४. उस ईशानावतंसक महाविमान के पूर्व में तिरछी दिशा पुरत्थिमे णं तिरियमसंखेज्जाई जोयणसह- पौरस्त्ये तिर्यग् असंख्येयानि योजसहस्राणि में असंख्य हजार योजन जाने पर देवेन्द्र देवराज ईशान स्साई वीईवइत्ता, एत्थ णं ईसाणस्स देविं- व्यतिव्रज्य अत्र ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवरा- के लोकपाल महाराज सोम का सुमन नाम का Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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