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श.३: उ.७ : सू.२५४-२५७
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भगवई
२५४. सकस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य २५४. ये निम्नांकित देव देवेन्द्र देवराज शक्र के महारण्णो इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया महाराजस्य इमे देवाः यथाऽपत्या अभिज्ञाता: लोकपाल महाराज सोम के पुत्र के रूप में पहचाने होत्था, तं जहा-इंगालए वियालए लोहिय- अभवन्, तद् यथा-अङ्गारकः विकालकः जाते हैं, जैसे-अंगारक (मंगलग्रह), विकालक क्खे सण्णिच्चरे चंदे सूरे सूक्के बुहे बहस्सई लोहिताक्षः शनिश्चरः चन्द्रः सूरः शुक्रः बुधः (ज्यातिष्क देव की एक जाति) लोहिताक्ष (एक बृहस्पतिः राहुः।
महाग्रह), शनिश्चर, चन्द्रमा, सूर्य, शुक्र, वुध, बृहस्पति और राहू।
राहू॥
२५५. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य २५५. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल की स्थिति महारण्णो सतिभागं पलिओवमं ठिई महाराजस्य सत्रिभागं पल्योपमं स्थितिः त्रिभाग अधिक एक पल्यापम की प्रज्ञप्त है। पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं प्रज्ञप्ता। यथापत्याभिज्ञातानां देवानाम् एक उसके पुत्र-रूप में पहचाने जाने वाले देवों की एगपलिओवमं ठिई पण्णत्ता। एमहिड्ढीए पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता। इयन्महर्द्धिकः । स्थिति एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। लोकपाल जाव महाणुभागे सोमे महाराया॥ यावन् महानुभाग: सोमः महाराजः । सोम ऐसी महान ऋद्धि वाला यावत् महान् सामर्थ्य
वाला है।
भाष्य
१.. सुत्र के रूप में पहचाने जाने वाले (यथापत्याभिज्ञात)
पुत्र के रूप में अभिमत।'
यम-पदं
यम-पदम्
यम-पद २५६. कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स । कुत्र भदन्त ! शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य २५६. भन्ते! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल
देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिट्टे नाम यमस्य महाराजस्य वरशिष्टं नाम महाविमानं महाराज यम का वरशिष्ट नाम का महाविमान महाविमाणे पण्णत्ते? प्रज्ञप्तम्?
कहां प्रज्ञप्त है? गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस गीतम! सौधर्मावतंसकस्य महाविमानस्य गीतम! सौधर्मावतंसक महाविमान के दक्षिण भाग दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं दक्षिणे सौधर्मे कल्पे असंख्येयानि योजन- में सौधर्मकल्प में असंख्य योजन जाने पर देवेन्द्र जोयणसहस्साई वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स सहस्राणि व्यतिव्रज्य, अत्र शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम का देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिढे । देवराजस्य यमस्य महाराजस्य वरशिष्टं नाम वरशिष्ट नाम का महाविमान है। वह साढा-बारह नाम महाविमाणे पण्णत्ते-अद्वतेरसजोयण- महाविमानं प्रज्ञप्तम्-अर्द्धत्रयोदशयोजन- लाख योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला है-सोम सयसहस्साइं-जहा सोमस्स विमाणं तहा शतसहस्राणि-यथा सोमस्य विमानं तथा के विमान तक जैसा वर्णन है, वैसा ही वर्णन जाव अभिसेओ। रायहाणी तहेव जाव। यावद् अभिषेकः। राजधानी तथैव यावत् । अभिषेक तक ज्ञातव्य है (सू. २५०)। राजधानी पासायपंतीओ। प्रासादपंक्तयः।
का वर्णन भी प्रासाद-पंक्ति तक सोम की राजधानी की भांति ज्ञातव्य है।
२५७. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यमस्य महाराजस्य २५७. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज महारण्णो इमे देवा आणा-उववाय- इमे देवाः आज्ञा-उपपात-वचन-निर्देशे यम की आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में -वयण-निद्देसे चिट्ठति, तं जहा-जमकाइया तिष्ठन्ति, तद् यथा-यमकायिकाः इति वा, रहने वाले देव ये हैं-यमकायिक, यमदेवकायिक, इ वा, जमदेवयकाइया इवा, पेतकाइया यमदेवताकायिकाः इति वा, प्रेतकायिकाः प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमार, असुरइ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुर- इति दा, प्रेतदेवताकायिकाः इति वा, कुमारियां, कन्दर्प', नरकपाल और आभियोगिक'। कुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरय- असुरकुमाराः, असुरकुमार्यः, कन्दर्पाः, नरक- इस प्रकार के जितने अन्य देव हैं, वे सब देवेन्द्र पाला, आभियोगा-जे यावण्णे तहप्पगारा पालाः, आभियोगा:-ये चापि अन्ये तथा- देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम के प्रति सव्ये ते तब्भत्तिगा, तप्पक्खिया, तब्भारिया प्रकाराः सर्वे ते तद् भक्तिकाः, तत्पाक्षिकाः, भक्ति रखते हैं, उसके पक्ष में रहते हैं, उसके सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स तद्भार्याः, शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यमस्य वशवर्ती रहते हैं तथा उसकी आज्ञा, उपपात,
१. भ. वृ. ३/२५५- 'अहावच्च'त्ति यथाऽपत्यानि तथा ये ते यथाऽपत्यादेवाः पुत्रस्थानीया इत्यर्थः 'अभिण्णाय' त्ति अभिमता अभिमतवस्तुकारित्वादिति।
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