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________________ भाष्यविषयानुक्रम ३१० भगवई विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ २४६ १६२ २७५ १५१ WOW NP सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेग और व्युत्सर्ग सामुदानिक सायुष्क संक्रमण या निरायुष्क सारक सार्थवाह सिंहनाद सित सिद्ध....सब दुःखों का अन्त करता है सुक्कलेस्साणं सुख २१६ P १३८ १ संवेग २१४ २४६ २०२ २०६ संपल्यंकासन संयतासंयत संयम संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए संयम की आराधना करने वाले संयम की विराधना करने वाले संलेखना की आराधना में लीन २४७ संवर संवर-निर्जरा की चर्चा १५७ संसार संस्थान ६५,२०६ संस्थान-काल संहनन सण्ह, लण्ड सत्व सत्य के प्रति स्वयं निश्चल (असहेज) २६५ सदा-समित सनिवेश समपादिका २४२ समचतुरस्त्र संस्थान समाहारगा समिति, गुप्ति आदि मुनिचर्या का उपदेश समुद्घात २५२ सम्यक् श्रद्धा सम्यग्दृष्टि में तीन ज्ञान का नियम है, मिथ्यादृष्टि में तीन अज्ञान की भजना है सम्यग्मिथ्यादृष्टि में भंग सर्वाक्षरसन्निपाती लब्धि से युक्त सवीर्य, अवीर्य १६८ सबंति, सब्बाबंति सशरीर या अशरीर १५१ साठ भक्त २४६ सात हाथ की ऊंचाई वाले समचतुरस्र संस्थान से संस्थित बज्रऋषभनाराच संहनन-युक्त सानिपातिक २३३ सामान्य जीव सामायिक आदि ग्यारह अंग MUCO COM २६८ १५ सूक्ष्म, स्थूल सूर्य का उदय और अस्त १२२ सेनापति २१६ सोपक्रम आयु, निरुपक्रम आयु सोमणस्सिए २२२ स्कन्दक-कथा २०८ स्कन्दक के द्वारा निर्ग्रन्थ-प्रवचन के प्रति आस्था की अभिव्यक्ति २३२ स्थविर १८३ स्थविर की विशेषता स्थान ११२,२४१ स्थान-मार्गणा स्थिति-उदीरणा की योग्यता स्थिति-स्थान १०७ नेह २६३ नेहकाय स्पर्श १२३ स्पर्शना १२६ स्पृष्ट ४६,१५८ स्फोटवाद १६१ स्वभाव से २०१ २३५ ७६ १४१ ११५ ११५ ७८ १२३ हस्तिशुण्डिकासन हिंसात्सक प्रवृति पर विभज्यवाद हित हुण्ड संस्थान हृष्टतुष्ट होत्या २१४ ११४ २२२ २१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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