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________________ विषय अंकुश अंतिमशरीरी अक्रियावाद अक्षय अज्झत्थिय अज्ञान अज्ञान के भंग अदृष्ट अधिक भंग अनभिगम अनलंकृतविभूषित अनिर्यूट अनिहरिम अथवा अनिर्धारि अनुदीर्ण अनुदीर्ण उदीरणाभव्य कर्म अनुपधारित अनुपरिवर्तन और व्यतिव्रजन अनेक बार अथवा अनन्त बार अन्तकर अन्तक्रिया अन्तःशल्यमरण अन्तेवासी अन्ययूथिक मत से महावीर के मत की मित्रता अपरा अपौरुषेय अप्प अप्पभारे अप्रतिकर्म अथवा अपरिकर्म अबोधि अभिगमन....पर्युपासन अभिगमों अभिनिविष्ट अभिसमन्वागत अरहंतादिशब्दों का विशेष अर्थ अर्थ अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण और व्याकरण अर्ध अर्धपर्यंकासन अलमस्तु अलोकाकाश Jain Education International परिशिष्ट - २ भाष्यविषयानुक्रम पृष्ठ २१८ १०४ १६१ २२३ २१७ १८३ ११५ १८३ १२० १८३ २२१ १८३ २३० ८६ ८६ १८३ १७१ २५५ १०४ ६६,१६१ २२६ १४ २६० १५३ १३८ २७६ २३३ २३० १८३ २१४ २७२ १५८ १५८ ७ २१४ २१७ १४६ २४२ १०४ २६६ विषय अवकाशान्तर अवगाहना अवधारणी भाषा अवभासित.... प्रभासित करता है अवस्थित अविरति अव्यय अव्यवछिन्न अव्याकृत अशून्यकाल असंज्ञी असंज्ञी आयु असंयत का वानमंतरदेव-रूप में जन्म असंवृत-संवृत अस्तित्व- नास्तित्व अस्थिचर्मावनद्ध अस्थि-मज्जा-प्रेमानुरागरक्त आकर आकाश-प्रतिष्ठित आकाशास्तिकाय आकीर्ण आकुलीकरण और परीतीकरण आक्षेप आगल को ऊँचा और दरवाजे को खुला रखने वाले आचार गोचर आचार भाण्ड आच्छादित आजीविक आणाए आतंक आतापन-भूमि में आतापना लेता है आत्म-भाव-वक्तव्यता आत्मकर्तृत्ववाद आदिष्ट आधाकर्म आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में गर्भस्थ शिशु का विकास, क्षमता व व्यवहार आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं आनन्दित आनुगामिकता पृष्ठ १२३,१३५ ११२ २८१ For Private & Personal Use Only १२३ २२३ ३४ २२३ १८३ १८३ ६५ ६८ ७० ४३ ४० ७७ २४४ २६६ ४४ १३७ २६५ ४६ १७१ २११ २६६ २३३ २५० ४६ ६६ २३५ २३३ २४१ २७४ २७ ६५ १८५ १५६ २४ २२२ २१४ www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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