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________________ भगवई २६६ श.२: उ.१०. सू.१४६-१५३ भाष्य १. सूत्र १४६-१५३ जैन विश्वविद्या के अनुसार लोक का प्रमाण चौदह रज्जु' है। है। तिर्यग्लोक लोक के प्रायः मध्य में है, इसलिए उसे मध्यलोक वह तीन भागों में विभक्त है-१. अधोलोक २. तिर्यक्लोक भी कहा जाता है। उसका व्याप्तिक्षेत्र १५०० योजन है, इसलिए ३.ऊर्ध्वलोक। धर्मास्तिकाय लोक की सीमा करनेवाला तत्त्व है। उसे वह धर्मास्तिकाय के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है। रलप्रभा आधार मानकर लोक के तीन विभागों की स्पर्शना पर विचार किया पृथ्वी आदि सब की ऊंचाई (व्याप्तिक्षेत्र) संख्यात योजनों में होने से, गया है। अधोलोक का व्याप्तिक्षेत्र (ऊंचाई की अपेक्षा से) सात रज्जु वे धर्मास्तिकाय के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। केवल से कुछ अधिक है, इसलिए वह धर्मास्तिकाय के कुछ अधिक अर्धभाग अवकाशान्तर का व्याप्ति-क्षेत्र (ऊंचाई) सर्वत्र असंख्यात योजन प्रमाण का स्पर्श करता है। ऊर्ध्वलोक का व्याप्तिक्षेत्र सात रज्जु से कुछ कम होने के कारण वह धर्मास्तिकाय के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है, इसलिए वह धर्मास्तिकाय के कुछ कम अर्धभाग का स्पर्श करता है। १. 'रज्जु' की मीमांसा के लिए देखें, विश्व-प्रहेलिका, पृ.११३-१२३ । PROMNAMAmar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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