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भगवई
२३
भूमिका
अस्थि णं भंते ! जीवा य पोग्गला य अण्णमण्णबद्धा, अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडताए चिटुंति ? हंता अत्थि।
से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं जीवा य पोग्गला य अण्णमण्णबद्धा, अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ?
गोयमा ! से जहाणामए हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठइ ।
अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदंसि एगं महं नावं सयासवं सयछिदं ओगाहेजा। से नृणं गोयमा ! सा नावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी-आपूरमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडताए चिट्ठइ ?
हंता चिट्ठइ।
से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अस्थि णं जीवा य पोग्गला य अण्णमण्णबद्धा, अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडताए चिट्ठति ?
अधिकांशतया प्रश्नोत्तर-पद्धति में प्रत्यक्ष शैली का प्रयोग किया गया है। प्रश्नकर्ता प्रश्न पूछता है और भगवान् उत्तर देते हैं। कहीं-कहीं रचनाकार ने परोक्ष शैली का भी प्रयोग किया है-'
अह भंते ! गोनंगूलवसभे, कुक्कडवसभे, मंडुक्कवसभे-एए णं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्टितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा ?
समणे भगवं महावीरे वागरेइ-उववजमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्वं सिया।
इससे अगले दो सूत्रों में भी यही शैली मिलती है। कहीं-कहीं स्फुट प्रश्न हैं, तो कहीं-कहीं एक ही प्रकरण से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर की शृंखला चलती है।
शतक के प्रारम्भ में संग्रहणी गाथा होती है। उसमें उस शतक के सभी उद्देशकों की सूची मिल जाती है। गद्य के मध्य में भी संग्रहणी गाथाएं प्रचुरता से मिलती हैं। उदाहरण के लिए चतुर्थ शतक का पांचवां और आठवां तथा छठे शतक का १३२, १३४ वां सूत्र द्रष्टव्य हैं।
प्रस्तुत आगम के दो संस्करण मिलते हैं। एक संक्षिप्त संस्करण और दूसरा विस्तृत संस्करण । विस्तृत संस्करण का ग्रन्थमान सवा लाख श्लोकप्रमाण है, इसलिए उसे सवालक्खी भगवती कहा जाता है। उसकी एक प्रति हमारे पुस्तक-संग्रह में है। इन दोनों संस्करणों में कोई मौलिक भेद नहीं है। लघु संस्करण में जो समर्पण सूत्र है—पूरा विवरण देखने के लिए किसी दूसरे आगम को देखने की सूचना दी गई है, उसको पूरा लिख दिया गया है। प्रस्तुत आगम में समर्पण सूत्रों की संख्या बहुत बड़ी है। प्रथम शतक के चौदहवें सूत्र से ही समर्पण सूत्रों का प्रारम्भ हो जाता है और वह इकतालीसवें शतक तक चलता है। समर्पण-सूत्रों की पूरी तालिका इस प्रकार है:
प्रथम शतक
प्रमाण
निर्दिष्ट स्थल
१४
पण्ण.पद ७
समर्पण सूत्र १. जहा उस्सासपदे २. जहा पण्णवणाए पढमए आहारुद्देसए ३. ठिती-जहाठितीपदे
पण्ण.पद २८३-२४
पण्ण.पद ४
४. आहारो वि-जहा पण्णवणाए पढमे आहारुदेसए
पण्ण.पद २८३-८७
५. लेस्साणं बीओ उद्देसो माणियबो जाव इड्डी
१०२
पण्ण.पद १७।३६-८६
११२
पण्ण.पद २०
६. अंतकिरियापयं नेवत्वं ७. कम्मपगडीए पढमो उदेसो नेयवो जाद-अणुमायो समतो
१७४
पण्ण.पद २३ ॥१-२३
४४७
पण्ण.पद६
८. वकंतीपयं माणियत्वं १. १२/१५६।
३.६११२२-१२७१०।२४-३८।
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