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________________ श.१: उ.७: सू.३१८-३३३ १४४ भगवई ३३०. नेरइए णं भंते ! नेरइएहिंतो उबट्टे, नैरयिकः भदन्त ! नैरयिकेभ्यः उद्धृत्तः, किं ३३०. भन्ते ! नैरयिकों से उद्वृत्त (निकला) हुआ किं-१. देसेणं देसं उबट्टे ? २. देसेणं ___-१. देशेन देशम् उद्वृत्तः ? २. देशेन नैरयिक क्या-१. देश के द्वारा देश से उद्वृत्त सव्वं उबट्टे ? ३. सब्वेणं देसं उबट्टे ? सर्वम् उद्वृत्तः ? ३. सर्वेण देशम् उद्वृत्तः? है? २. देश के द्वारा सर्व से उद्वृत्त है ? ३.सर्व ४.सब्वेणं सव्वं उबट्टे ? ४. सर्वेण सर्वम् उद्वृत्तः ? के द्वारा देश से उद्वृत्त है ? ४. सर्व के द्वारा सर्व से उवृत्त है ? गोयमा ! १. नो देसेणं देसं उबट्टे । २.नो गौतम ! १. नो देशेन देशम् उद्वृत्तः। २.नो गौतम ! वह १. देश के द्वारा देश से उद्वृत्त नहीं देसेणं सव्वं उबट्टे । ३. नो सवेणं देसं देशेन सर्वम् उद्धृत्तः। ३. नो सर्वेण देशम् है। २. देश के द्वारा सर्व से उद्वृत्त नहीं है। उबट्टे । ४. सबेणं सब्बं उबट्टे ॥ उद्वृत्तः । ४. सर्वेण सर्वम् उद्वृत्तः। ३. सर्व के द्वारा देश से उदवृत्त नहीं है। ४. सर्व के द्वारा सर्व से उद्वृत्त है। ३३१. एवं जाव वेमाणिए॥ एवं यावद् वैमानिकः। ३३१. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है। ३३२. नेरइए णं भंते ! नेरइएहितो उचट्टे, किं-१.देसेणं देसं आहारेइ ? २. देसेणं सवं आहारेइ ? ३. सब्बेणं देसं आहारेइ ? ४. सवेणं सव्वं आहारेइ ? गोयमा! नो देसेणं देसं आहारेइ । २. नो देसेणं सव्वं आहारेइ । ३. सब्वेणं वा देसं आहारेइ। ४. सब्वेणं वा सबं आहारेइ॥ नैरयिकः भदन्त ! नैरयिकेभ्यः उद्वृत्तः किं ३३२. भन्ते ! नैरयिकों से उबृत्त नैरयिक क्या -१. देशेन देशम् आहरति ? २. देशेन १. देश के द्वारा देश का आहरण करता है? २. सर्वम् आहरति ? ३. सर्वेण देशम् आहरति? देश के द्वारा सर्व का आहरण करता है ? ३. ४. सर्वेण सर्वम् आहरति ? सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है ? ४. सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है ? गौतम ! १. नो देशेन देशम् आहरति । २.नो गौतम ! वह १. देश के द्वारा देश का आहरण देशेन सर्वम् आहरति । ३. सर्वेण वा देशम् नहीं करता। २. देश के द्वारा सर्व का आहरण आहरति । ४. सर्वेण वा सर्वम् आहरति। नहीं करता। ३. सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है। ४. अथवा सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है। ३३३. एवं जाव वेमाणिए॥ एवं यावद् वैमानिकः। ३३३. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है। भाष्य १ सूत्र ३१८-३३३ उपपयमान और उपपत्र जीव पूर्व जीवन को समाप्त कर नए उद्वर्तमान और उद्वृत्तमृत्यु से पूर्व अन्तर्मुहूर्त की अवस्था जन्म-स्थान में जाता है। वह उत्पत्ति के पहले समय में पर्याप्ति के उद्वर्तमान अवस्था है। उपपद्यमान अवस्था और उद्वृत्त अवस्था का योग्य पुद्गलों का ग्रहण कर आहार-पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाता है। ___ कालमान एक ही है। उसके पश्चात् शरीर आदि पर्याप्तियों का निर्माण करता है। शरीर प्रस्तुत आलापक में प्रयुक्त देसेणं देस, सवेणं सवं ये शब्द और इन्द्रिय-पर्याप्ति के निर्माण से पूर्ववर्ती अवस्था उपपद्यमान अवस्था सम्बन्ध-सापेक्ष हैंहै। आहार-, शरीर- और इंद्रिय-पर्याप्ति से पर्याप्त अवस्था उपपन्न उपपयमान, उपपत्र के सन्दर्भ मेंअवस्था है।' अनुपपन्न जीव की मृत्यु नहीं होती। उक्त तीन पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव की मृत्यु हो सकती है। इसलिए उपपद्यमान और देसेणं-जीव का एक भाग। उपपन्न में यह भेदरेखा खींची जा सकती है। देस–मनुष्य आदि अवयवी का एक भाग। १. त.रा.वा.२।३४, भाग१,पृ.१४५ - देवादिशरीरनिवृत्तौ हि देवादिजन्मेष्टम्, तस्यां चावस्थायामनाहारकत्वान्न देवादिशरीरनिर्वृत्तिरस्ति तत उपपादो जन्म युक्तम्, तच्च देवनारकाणामिति । २. स्था.वृ.प.५०–अपर्याप्तकास्तु उच्छ्वासपर्याप्त्या अपर्याप्त एव म्रियन्ते, न तु शरीरेन्द्रियपर्याप्तिभ्यां, यस्मादागामिभवायुष्कं बध्वा प्रियन्ते, तच्च शरीरेन्द्रियादिपर्याप्त्यां पर्याप्तरेव बध्यत इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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