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श.१: उ.५: सू.२१७
२६.क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २७.क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त।
भगवई माणोवउत्ते य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ते ताश्च, मानोपयुक्तश्च, मायोपयुक्ताश्च, य। २३.कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ते य, लोभोपयुक्तश्च । २३.क्रोधोपयुक्ताश्च, मानो- मायोक्उत्ता य, लोभोवउत्ता या पयुक्तश्च, मायोपयुक्ताश्च, लोभोपयुक्ताश्च। २४.कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य, मायो- २४.क्रोधोपयुक्ताश्च, मानोपयुक्ताश्च, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य । २५.कोहोवउत्ता पयुक्तश्च, लोभोपयुक्तश्च। २५.क्रोधोपय, माणोवउत्ता य, मायोवउत्ते य, लोभो- युक्ताश्च, मानोपयुक्ताश्च, मायोपयुक्तश्च, वउत्ता य। २६.कोहोवउत्ता य, माणो- लोभोपयुक्ताश्च। २६.क्रोधोपयुक्ताश्च, वउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ते य। मानोपयुक्ताश्च, मायोपयुक्ताश्च, लोभोप२७.कोहोवउत्ताय, माणोवउत्ताय, मायो- युक्तश्च। २७.क्रोधोपयुक्ताश्च, मानोपवउत्ता य, लोमोवउत्ता य॥
युक्ताश्च, मायोपयुक्ताश्च, लोभोपयुक्ताश्च ।
भाष्य
गया है।
१. सूत्र २१७
नैरयिक जीवों में क्रोध-संज्ञा की प्रबलता होती है, इसलिए विरह की संभावना हो, वहां अस्सी भंग और जहां विरह न हो, उनमें क्रोधोपयुक्त अधिक संख्या में मिलते हैं। उनकी आयुस्थिति वहां सत्ताईस भंग होंगे अथवा अभंग होगा। यह विरह और अविरह
और क्रोध, मान, माया, लोभ की संज्ञा के आधार पर उनके अनेक का निरूपण सत्ता की अपेक्षा से किया गया है, उत्पत्ति की अपेक्षा वर्गीकरण बन जाते हैं। प्रस्तुत आलापक में उनका दिग्दर्शन कराया से नहीं। रलप्रभा के नैरयिकों में उत्पत्ति का विरह-काल चौबीस
मुहूर्त है। यदि इसे आधार माना जाए तो जहां सत्ताईस भंगों का __जघन्य स्थिति वाले नैरयिक सदा उपलब्ध होते हैं। उनकी
निर्देश है, वहां विरह होने के कारण अस्सी भंग बन जाएंगे। अतः संख्या अधिक होती है। उनमें क्रोधोपयुक्त जीवों की बहलता होती भंग-व्यवस्था का निरूपण सत्ता की अपेक्षा से किया गया है।' है। इसलिए उनके सत्ताईस विकल्प बनते हैं। एक, दो, तीन, यावत् क्रोध, मान, माया और लोभ-इनके सत्ताईस और अस्सी संख्येय समय अधिक जघन्य स्थिति वाले नैरयिक कभी होते हैं और भंग बनते हैं। इनके अंतर का मुख्य कारण है-क्रोध का बहुवचन कभी नहीं भी होते। इसलिए उनके विकल्प अधिक बन जाते हैं और एकवचन । विकल्पों में मान, माया और लोभ-ये एकवचन -अस्सी बन जाते हैं। असंख्येय समय अधिक जघन्य स्थिति वाले और बहुवचन दोनों में ही ग्रहण किए जाते हैं। जहां इन तीनों के तथा विवक्षित नरकावास के प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले के सत्ताईस ____ साथ 'क्रोधोपयुक्त' बहुवचन में होता है, वहां सत्ताईस भंग बनते हैं। भंग होते हैं।
जहां क्रोध का एकवचन और बहुवचन दोनों ग्रहण किए जाते हैं, वृत्तिकार ने एक गाथा उद्धृत कर भंग-विषयक दो नियमों
वहां अस्सी भंग बनते हैं। एकवचन को '१' की संख्या से और का निर्देश किया है जहां एक समय से लेकर संख्यात समय पर्यन्त बहुवचन को '३' की संख्या से दिखाया गया है—देखें भंग-सचक
यन्त्र
२७ भंग
द्विक संजोगिया ६
इक जोगिया १ क्रोध मान सर्व क्रोध ०
।
मान
माया
लोभ
माया ०
लोभ ०
क्रोध ३
१
१
२
१
१
०
०
१. भ.वृ.१।२१७ --
संभवइ जहिं विरहो असीई भंगा तहिं करेजाहि । जहियं न होइ विरहो, अभंगयं सत्तवीसा वा ॥१॥
अयं च तत्सत्तापेक्षो विरहो द्रष्टव्यो न तूत्पादापेक्षया, यतो रत्नप्रभायां चतुर्विंशतिर्मुहूर्ता उत्पादविरहकाल उक्तः, ततश्च यत्र सप्तविंशतिभङ्गका उच्यन्ते तत्रापि विरहभावादशीतिः प्रापोति, सप्तविंशतेश्चाभाव एवेति ।
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