SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूयगडो १ दृष्टियों से समझने का प्रयत्न करे। १०७. जिसका वचन लोकमान्य होता है (आएण्जयमके) १०८. कुशल (कुसले) ५६२ Jain Education International आदेववाक्य अर्थात् वह व्यक्ति जिसका वचन लोकमान्य होता है, ग्राह्य होता है।" अध्ययन १४ टिप्पण १०७-१०८ पूर्णिकार ने इसके तीन अर्थ किए है १. प्रत्यक्षज्ञानी । २. परोक्षज्ञानी । ३. खेदज्ञ - आत्मज्ञ । वृत्तिकार के अनुसार जो मुनि आगम के प्रतिपादन में तथा सद् अनुष्ठान में निपुण होता है वह कुशल कहलाता है ।" १. (क) चूणि, पृ० २३७ : आशाग्राह्या आगमेनैव प्रज्ञापयितव्याः दान्तिकोऽपि हेतुदाहरणोपसंहारः । अथवा तत्र तत्र इति स्वसमये परसमये वा तथा ज्ञानादिषु द्रव्याविषु वा, उत्सर्गाऽपवादयोर्वा यत्र यत्र तत् तथा द्योतयितव्यम् । (ख) वृत्ति पत्र २४० २५९ धर्मचारिवासवं यः सम्यक् वेति विन्दते वा सम्य समते तत्र त ति जाज्ञाप्राह्योऽर्थः स आशय प्रतिपतयो हेतुस्तु सम्यहेतुना यदि वा स्वसमयसिद्धोऽर्थः स्वसमये व्यवस्थापनीयः पर (समय) सिद्धस्व परस्मिन् अथवोत्सर्गापचादयो वस्थितोऽस्ताभ्यामेव वचास्वं प्रतिपादयितव्यः । २. (क) चूर्णि, पृ० २३७ : आवेयवाक्य इति ग्राह्यवाक्यः । (ख) वृत्ति, पत्र २५६ : आदेयवाक्यो ग्राह्यवाक्यो भवति । ३. चूर्णि, पृ० २३७ : प्रत्यक्षः परोक्षज्ञानी वा खेदण्णे । ४. वृति पत्र २५ कुशलो - निपुणः आगमप्रतिपादने सहाने । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy