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सूयगडो १
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अध्ययन १४ : टिप्पण ८२-८३
क्योंकि यदि गृहस्थ मिथ्या प्रतिपन्न है तो
बुद्ध ने कहा - इसका निश्चित उत्तर (सत्य या असत्य) नहीं दिया जा सकता। पहला भंग असत्य है और यदि गृहस्थ सम्यक् प्रतिपन्न है तो पहला भंग सत्य है । इसी प्रकार यदि प्रव्रजित मिथ्या प्रतिपन्न है तो पहला भंग सत्य है और यदि वह सम्यक् प्रतिपन्न है तो पहला भंग असत्य है । इसलिए कुछ कथन ऐसे होते हैं, जिनका पूरा विश्लेषण किए बिना, वे सत्य हैं या असत्य, ऐसा नहीं कहा जा सकता । '
बौद्ध साहित्य में चार प्रकार के प्रश्नों का उल्लेख है'
१. ही एकशव्याकरणीयो ईसा प्रश्न जिसका उत्तर एकांसकामी हो ।
२. पण्हो पतिपुच्छव्याकरणीयो- वैसा प्रश्न जिसका उत्तर प्रतिप्रश्न से दिया जाए ।
३. पण्होथापणीयो - वैसा प्रश्न जिसका उत्तर अपेक्षित नहीं होता |
४. पण्हो विभज्जव्याकरणीयो - वैसा प्रश्न जिसका उत्तर विश्लेषण के साथ दिया जाए ।
विभज्यवाद को अनेकांशिकवाद भी कहा जा सकता है ।
इसका अंग्रेजी रूपान्तर है-Conditional assertions or Analytical assertions.
पालि साहित्य में 'वि' पूर्वक 'भज्' धातु विशेष अर्थ में प्रयुक्त है। उसका अर्थ है-विस्तारपूर्वक कहना । पालि भाषा में 'उद्देश' का अर्थ संक्षेप में कहना और विभ या विमंग' का अर्थ है-विस्तारपूर्वक कहना
'अर्ली बुद्धिस्ट थियरी ऑफ नोलेज' के विद्वान् लेखक ने बौद्धों के अनेकांशिकवाद की तुलना जैन दर्शन सम्मत 'अनेकान्तवाद' से की है । वे लिखते
Anekamsika=an + ek (a ) + ams (a ) + ika ānd anekāntaan+ek (a ) + anta and while amsa means 'part, corner or edge' (s. v. amsa, PTS. Dictonary') anta means 'end or edge'.4
ין
यह शाब्दिक दृष्टि से तुलना हो सकती है किन्तु अनेकान्तवाद की जो दार्शनिक पृष्ठभूमि है, वह अनेकांशिकवाद की नहीं है। अनेकवाद प्रत्येक पदार्थ में अनन्तविरोधी धर्मों की स्वीकृति देता है अनेकांशवाद में ऐसा नहीं है। लेखक ने अनेकांश वाद को विभज्यवाद का पर्याय कहा है । "
बुद्ध स्वयं कहते हैं- एकांसिकापि मया धम्मा देसिता पन्नता, अनेकांसिकापि मया धम्मा देसिता पन्नता ।"
उन्हें पूछा गया - एकांशिक धर्म कौन से हैं और अनेकांशिक धर्म कौन से हैं ? उत्तर में उन्होंने कहा - 'इदं दुक्खं इति' - यह दुःख है यह एकांशिक धर्म की प्रज्ञप्ति है और 'सस्तो लोको ति वा' लोक शाश्वत भी है यह अनेकांशिक धर्म की प्रज्ञप्ति है ।"
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८२. धर्म के लिए समुत्थित पुरुषों के साथ (धम्मसमुट्ठितेहि )
धर्म या संयम के अनुष्ठान से सम्यक् उत्थित अर्थात् सत्साधु, उद्यतविहारी। ऐसे साधु जो यथार्थ में साधनारत हैं और जो संयम से ओतप्रोत हैं । केवल प्रयोजन मात्र को सिद्ध करने के लिए मुनिवेश को धारण करने वाले धर्म में समुत्थित नहीं हो सकते ।
८३. दो भाषाओं (भासादुगं )
भाषा के चार प्रकार हैं
१. मज्झिमनिकाय II, ४६१, २०४६६ ।
२. अंगुत्तरनिकाय II ४६ ।
३. मज्झिमनिकाय III १९३ । अंगुत्तरनिकाय II ११८, २२३ ।
४. Early Buddhist Theory of Knowledge, Page 280.
५. Early Buddhist Theory of Knowledge, Page 280
A Conditional assertion (vibhajja-vada) would be an anekarisa - (or anekamsika.) vada. ६. दीघनिकाय I १६१ । ७. वही, I १९१ ।
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