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________________ प्रयगडो। अध्ययन १२ : टिप्पण १ नियुक्तिकार ने अक्रियावाद के ८४ प्रवादों का उल्लेख किया है।' चूर्णिकार के अनुसार उनका विवरण इस प्रकार है-जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष-ये सात तत्त्व हैं । इनके स्वतः और परत:-ये दो-दो भेद हैं । इस प्रकार ७४२=१४ भेद हुए। काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा-इन छह तत्त्वों के साथ गुणन करने से (१४४६) ८४ भेद हुए। आचार्य अकलंक ने अक्रियावाद के कुछ प्रमुख आचार्यों का उल्लेख किया है-कौक्वल, कांठेविद्धि, कौशिक, हरिश्मश्रु मान्, कपिल, रोमश, हारित, अश्वमड, अश्वलायन आदि । चूर्णिकार ने सांख्य और ईश्वर को कारण मानने वाले वैशेषिक को अक्रियावादी माना है। सांख्य-दर्शन के अनुसार क्रिया का मूल प्रकृति है । पुरुष अकर्ता है । पुरुष के अकर्तृत्व की दृष्टि से सांख्य दर्शन को अक्रियावाद की कोटि में परिगणित किया गया है। वैशेषिकों के अनुसार जगत् के मूल उपादान परमाणु हैं । नाना प्रकार के परमाणुओं के संयोग से भिन्न-भिन्न वस्तुएं बनती हैं । कारण के बिना कार्य नहीं होता । जगत् कार्य है और उसका कर्ता ईश्वर है । जैसे कुंभकार मिट्टी आदि उपादानों को लेकर घड़े की रचना करता है, वैसे ही ईश्वर परमाणुओं के उपादान से सृष्टि की रचना करता है। वह जीवों को कर्मानुसार फल देता है। कर्म का फल आत्मा के अधीन नहीं है इस दृष्टि से वैशेषिक दर्शन को अक्रियावाद की कोटि में परिगणित किया है। क्रियावाद और अक्रियावाद का चिंतन आत्मा को केन्द्र में रख कर किया गया है। आत्मा है, वह पुनर्भवगामी है। वह कर्म का कर्ता है, कर्म-फल का भोक्ता है और उसका निर्वाण होता है-यह क्रियावाद का पूर्ण लक्षण है। इनमें से एक अंश को भी अस्वीकार करने वाला अक्रियावादी होता है। सांख्यदर्शन में आत्मा कर्म का कर्ता नहीं है और वैशेषिक दर्शन में आत्मा कर्म-फल भोगने में स्वतंत्र नहीं है। इसी अपेक्षा से चूर्णिकार ने दोनों दर्शनों को अक्रियावाद की कोटि में परिगणित किया, ऐसी संभावना की जा सकती है। प्रस्तुत श्लोक की व्याख्या में चूर्णिकार ने पंचमहाभौतिक, चतुर्भोतिक, स्कंधमात्रिक, शून्यवादी, लोकायतिक-इन्हें अक्रियावादी बतलाया है। ३. अज्ञानवाद अज्ञानवाद का आधार अज्ञान है ।' अज्ञानवाद में दो प्रकार की विचारधाराएं संकलित हैं। कुछ अज्ञानवादी आत्मा के होने में संदेह करते हैं और उनका मत है कि आत्मा है तो भी उसे जानने से क्या लाभ? दूसरी विचारधारा के अनुसार ज्ञान सब समस्याओं का मूल है, इसलिए अज्ञान ही श्रेयस्कर है। विस्तृत जानकारी के लिए देखें-१।४१ का टिप्पण । नियुक्ति के अनुसार अज्ञानवाद के ६७ प्रकार होते हैं । उनकी गाणितिक पद्धति इस प्रकार है-जीव, अजीव आदि नौ पदार्थों को सत्, असत्, सदसत्, अवक्तव्य, सद्-अवक्तव्य, असद्-अवक्तव्य तथा सद्-असद्-अवक्तव्य-इन सात भंगो से गुणन करने पर १ सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा ११२........ अक्किरियाणं च होति चुलसीति । २. चूणि पृ० २०६ : इदाणि अकिरियावादी काल-यदच्छा-नियति-स्वभावेश्वरा-ऽऽत्मतश्चतुरशीतिः । नास्तिकवादिगणमतं न सन्ति .सप्त स्व-परसंस्था: ८ एक । इमेनोपायेन–णत्यि जीवो सतो कालओ १ स्थि जीवो परतो कालतो २ एवं यदृच्छाए वि दो २ णियतीए वि दो २ इस्सरतो वि दो २ स्वभावतो वि दो २, (आत्मतो वि दो २,) सव्वे वि बारस, जीवादिसु सत्तसु गुणिता चतुरासीति भवंति ८४ । ३. तत्त्वार्थवातिफ ८१, भाग २ पृष्ठ ५६२ : कौक्वलकाण्ठे विद्धिकौशिकहरिश्मश्रुमानकपिलरोमशहारिताश्वमुण्डाश्वलायनादिमत विकल्पात् क्रिया (अक्रिया) वादाश्चतुरशीतिविधा द्रष्टव्याः। ४. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा ११२, चूणि, पृ० २०६ : सांसचा वैशेषिका ईश्वरकारणादि अकिरियावादी चउरासीति । ५.णि, पृ० २०७ : ते तु जधा पंचमहाभूतिया चतुमतिया खंधमेत्तिया सुग्णवादिणो लोगायतिगा इच्चादि अकिरियावादिणो। ६. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा १११ :..........."अण्णाणी अण्णाणं । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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