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________________ सूयगडो १ ४६६ अध्ययन १२ : टिप्पण १ अपेक्षा से लेते हैं । इसी प्रकार शेष तत्त्वों के भी भेद होते हैं । सबका संकलन करने पर (२०४६) १८० भेद होते हैं।' चूणिकार ने प्रस्तुत अध्ययन के प्रथम श्लोक की व्याख्या में क्रियावादों के बारे में संक्षिप्त सी जानकारी प्रस्तुत की है। क्रियावादी जीव का अस्तित्व मानते हैं । उसका अस्तित्व मानने पर भी वे उसके स्वरूप के विषय में एकमत नहीं हैं। कुछ जीव को सर्वव्यापी मानते हैं, कुछ उसे अ-सर्वव्यापी मानते हैं । कुछ मूर्त मानते हैं और कुछ अमूर्त । कुछ उमे अंगुष्ठ जितना मानते हैं और कुछ श्यामाक तंदुल जितना । कुछ उसे हृदय में अधिष्ठित प्रदीप की शिखा जैसा मानते हैं। क्रियावादी कर्म-फल को मानते हैं । आचार्य अकलंक ने क्रियावाद के कुछ आचार्यों का नामोल्लेख किया है-मरीचिकुमार, उलूक, कपिल, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गल्यायन आदि ।' २. अक्रियावाद नियुक्तिकार ने 'नास्ति' के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है।' नास्ति के चार फलित होते हैं-१. आत्मा का अस्वीकार, २. आत्मा के कर्तृत्व का अस्वीकार, ३. कर्म का अस्वीकार और ४. पुनर्जन्म का अस्वीकार ।' अक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि कहा गया है ।' स्थानांग सूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकार बतलाए गए हैं१. एकवादी ५. सातवादी २. अनेकवादी ६. समुच्छेदवादी ३. मितवादी ७. नित्यवादी ४. निर्मितवादी ८. नास्तिपरलोकवादी। विशेष जानकारी के लिए देखें-स्थानांग ८।२२ का टिप्पण (ठाणं, पृष्ठ ८३१-८३३) एकवादी के अभिमत का निरूपण प्रस्तुत सूत्र के १२१६ में मिलता है। निर्मितवादी का निरूपण ११११६४-६७ तथा २।१।३२ में प्राप्त है। सातवादी का निरूपण १।३।६६ में मिलता है। नास्तिपरलोकवाद का निरूपण १।१।११,१२ तथा २।१।१३ में मिलता है। जैन मुनि के लिए एक संकल्प का विधान है जो प्रतिदिन किया जाता है.--अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि-मैं अक्रिया का परित्याग करता हूं और क्रिया की उपसंपदा स्वीकार करता हूं।' १. चूणि, पृ० २०६ : एवं असीतं किरियावादिसतं । एएसु पदेसु णं चितितं जीव अजीवा आसव, बंधो पुण्णं तहेव पावं ति। संवर णिज्जर मोक्खो, सन्भूतपदा णव हवंति ॥ इमो सो चारणोवाओ-अस्थि जीवः स्वतो नित्यः कालतः, अत्थि जीवो सतो अणिच्चो कालतो, अत्थि जीवो परतो निच्चो कालओ, अस्थि जीवो परतो अणिच्चो कालओ र्क, अस्थि जीवो सतो णिच्चो णियतितो एवं णियतितो एक, स्वभावतो एक, (ईश्वरतो एक), आत्मतः एक, एते पंच चउक्का वीसं । एवं अजीवादिसु वि वीसावीसामेत्ताओ, णव बीसाओ आसीतं किरियावादिसतं १८० भवति । २. चूणि, पृ० २०७ : किरियावादोणं अस्थि जीवो, अत्थित्ते सति केसिंच सम्वगतो केसिंच असव्वगतो, केसिंच मुत्तो केसिंच अमुत्तो, केसिंच अंगुट्ठप्पमाणमात्रः केसिंच श्यामाकतन्दुलमात्रः, केसिंच हिययाधिट्ठाणे पदीवसिहोवमो, किरियावादी कम्म कम्मफलं च अत्थि ति भणंति । ३. तत्त्वार्थवार्तिक ८.१ भाग २ पृष्ठ ५६२। ४. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा १११ :........ " 'णत्थि ति अकिरियवादी य। ५. दशाश्रुतस्कंध, दशा ६, सूत्र ३ : अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियविट्ठी, नो सम्मावादी, नो नितिया वादी, न संति-परलोगवादी, णत्थि इहलोए णत्थि परलोए............"णो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्ण फला भवंति, णो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति । ६ वही, सूत्र ६ : नाहियवादी, नाहियपण्णे, नाहियविट्ठी। ७. ठाणं, ८।२२ : अट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता, तं जहा-एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, णिम्मित्तवाई, सायवाई समुच्छेदवाई, णिता वाई, संतपरलोगवाई। ८. आवश्यक ४ सूत्र। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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