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________________ सूयगडो । ४८३ प्रध्ययन ११:टिप्पण ५४-५६ श्लोक ३८: ५४. धीर मुनि (धोरे) इसके दो अर्थ हैं१. बुद्धिमान् । २. कष्टों से न घबराने वाला। ५५. काल की आकांक्षा (प्रतीक्षा) करे (कालमाकंखे) मरण-काल की आकांक्षा करे अर्थात् वह यह सोचे कि जीवन पर्यन्त मुझे इस सन्मार्ग पर निरन्तर चलना है।' वृत्तिकार ने इसका अर्थ- मृत्यु की आकांक्षा करे-किया है।' यहां 'आकखे' का अर्थ प्रतीक्षा करना उपयुक्त लगता है। जैन परम्परा के अनुसार यह मान्य है कि मुनि न जीवन की आकांक्षा करे और न मृत्यु की आकांक्षा करे । वह संयम का पालन करता हुआ मृत्यु की प्रतीक्षा करे। ५६. केवली का मत है (केवलिणो मतं) सुधर्मा ने जंबू से कहा- तुमने मुझे मार्ग का स्वरूप पूछा था। मैंने उसका प्रतिपादन अपने मन से नहीं किया है। केवली भगवान् ने जैसा उसका प्रतिपादन किया वही मैंने प्रस्तुत किया है।' १ वृत्ति, पत्र २१० : धी:-बुद्धिस्तया राजत इति धीरः, परीषहोपसर्गाक्षोभ्यो वा । २ चूणिः पृ. २०४ : कालं काङ्क्षतीति कालकंखी, मरणकालमित्यर्थः । कोऽर्थः ? तावदनेन सन्मार्गेण अविधामं गन्तव्यं यावन्मरणकालः। ३. वृत्ति, पत्र २१० 'कालं'-मृत्युकालं यावदमिकाङ्क्षत् । ४. वृत्ति, पत्र २१० : जम्बूस्वामिनमुद्दिश्य सुधर्मस्वाम्याह-तदेतत्त्वया मार्गस्वरूपं प्रश्नितं तन्मया न स्वमनीषिकया कषितं, कि सहि ?, केवलिनो मतमेतवित्येवं भवता पाह्यम् । (ख) चूणि, पृ० २०४॥ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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