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सूयगडो १
१४. श्लोक ७,८
पजीवनिकायवाद भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है यह सिद्धांत भगवान् महावीर से पूर्व किसी अन्य दार्शनिक द्वारा प्रतिपादित है, ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता भगवान् महावीर स्वयं कहते हैं आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रथों के लिए छह जीवनिकायों - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकायकिया है।"
का निरूपण
प्रस्तुत प्रकरण में मार्ग का सार बतलाया है- अहिंसा । उसका आधार है- षड्जीवनिकायवाद । इसलिए षड्जीवनिकाय को जाने बिना अहिंसा को नहीं जाना जा सकता और अहिंसा को जाने बिना मोक्ष मार्ग को नहीं जाना जा सकता । भगवान् महावीर के समय में चतुर्भूतवाद और पंचभूतवाद का उल्लेख मिलता है। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-ये चार महाभूत हैं। पृथ्वी जल, अग्नि, वायु और आकाश - ये पांच महाभूत हैं ।
अजित केशकंबल आत्मा को चार महाभूतों से उत्पन्न मानता था और आकाश भी उसके दर्शन में सम्मत था । इस प्रकार उसका दर्शन पंचभूतवादी था। इस पंचभूतवाद का उल्लेख प्रस्तुत सूत्र के प्रथम अध्ययन में मिलता है ।'
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इलोक ७८ :
प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वी, जल, अग्नि, और वायु का धातु के रूप में उल्लेख मिलता है। ये भूत अचेतन माने जाते थे और इनसे चेतना की उत्पत्ति मानी जाती थी किन्तु भगवान् महावीर ने इन भूतों का जीवत्व स्थापित किया। उन्होंने बतलायापृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस - ये सब जीव हैं। जितने प्रकार के जीव हैं, वे सब इन छह जीवनिकायों में समाविष्ट हो जाते हैं । इनसे भिन्न कोई जीव नहीं है । षड्जीवनिकाय का वर्गीकरण तीन रूपों में मिलता है
१. पहला वर्गीकरण -
पृथ्वी
अप्
अग्नि
दूसरा वर्गीकरण -
पृथ्वी
अप्
अग्नि]
वायु
वायु
तृण-वृक्ष और बीज ।
त्रस - प्राण - अंडज, जरायुज, संस्वेदज, रसज ।
तृण-वृक्ष और बीज
अंडज, पोत, जरा, रस, संस्वेद, उद्भिज
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अध्ययन ११ टिप्पण १४
१. ठाणं ६२ : से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं छरजोमणिकाया पण्णत्ता, तं जहा- पुढविकाइया, आउकाडया, तेजकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया ।
२. दीघनिकाय पृ० ४८ ।
३. सूयगडो १1१1७,८ ।
४. सूयगडो १।१।१८ : पुढवी आऊ तेऊ य तहा वाऊ य एगओ ।
चतारि धाउणो रूवं एवमाहंसु जाणगा ॥
५. सुगडी १७११।
६. सूयगडो, १६८, ६
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