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________________ एगारसमं अज्झयणं : ग्यारहवां अध्ययन मग्गे : मार्ग संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. कयरे मग्गे अक्खाते माहणेण मतीमता?। जं मग्गं उज्जु पावित्ता ओहं तरति दुत्तरं॥ कतरो मार्गः आख्यातः, माहनेन मतिमता। यं मार्ग ऋजुं प्राप्य, ओघं तरति दुस्तरम् ॥ १. (जंबू ने पूछा) 'मतिमान् श्रमण' (भगवान् महावीर) ने कौन-सा मार्ग' बतलाया है, जिस ऋजु मार्ग को' पाकर मनुष्य दुस्तर प्रवाह को तर जाता है ?" २.तं मग्गं अणुत्तरं सुद्धं सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू ! तं णे बूहि महामुणी!॥ २. उस अनुत्तर, शुद्ध और सर्व-दुख-विमोचक मार्ग को हे भिक्षु ! जैसे आप जानते हैं, हे महामुनि ! वैसे आप बतलाएं। तं मागं अनत्तरं शुद्धं, सर्वदुःखविमोक्षणम् । जानासि यथा भिक्षो!, तं नः ब्रूहि महामुने! ॥ यदि नः केचित् पृच्छेयुः, देवाः अथवा मानुषाः । तेषां तु कतरं मार्ग, आचक्षीमहि कथय नः ।। ३. यदि कुछ देव या मनुष्य" हमें पूछे, उन्हें कौन-सा मार्ग बतलाएं, आप हमें बताएं। ३. जइ णे केइ पुच्छेज्जा देवा अदुव माणुसा। तेसि तु कयरं मग्गं आइक्खेज्ज? कहाहि णो॥ ४. जइ वो केइ पुच्छेज्जा देवा अदुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहेज्जा मग्गसारं सुणेह मे॥ यदि वः केचित् पृच्छेयुः, देवाः अथवा मानुषाः । तेषामिमं प्रति कथयेत्, मार्गसारं शृणुत मे॥ ४. (सुधर्मा ने कहा) कुछ देव या मनुष्य तुम्हें पूछे, उन्हें जो मार्ग-सार बताया जाए वह तुम मुझसे सुनो। ५. अणुपुव्वेण महाघोरं कासवेण पवेइयं । जमादाय इओ पुव्वं समुदं ववहारिणो॥ अनुपूर्वेण काश्यपेन यमादाय महाघोरं, प्रवेदितम् । इतः पूर्वा व्यवहारिणः॥ ५. ६. काश्यप (भगवान् महावीर) के द्वारा बतलाए हुए मार्ग को तुम मुझसे सुनो, जो क्रम से प्राप्त होता है", महाघोर है, जिसे प्राप्त कर इससे पूर्व" अनेक व्यक्ति (संसार-समुद्र को) तर गए, तर रहे हैं और तरेंगे जैसे व्यापारी समुद्र को। वह मार्ग अपनी श्रुति के अनुसार मैं तुम्हें बताऊंगा। समुद्र ६. अतरिसु तरंतेगे तरिस्संति अणागया। तं सोच्चा पडिवक्खामि जंतवो! तं सुणेह मे॥ अतारिषः तरन्त्येके, तरिष्यन्ति अनागताः । तं श्रुत्वा प्रतिवक्ष्यामि, जन्तवः! तं शृणत मे। ७. पुढवीजीवा पुढो सत्ता आउजीवा तहागणी। वाउजीवा पुढो सत्ता तण रुक्खा सबीयगा। पृथ्वीजीवाः पृथक् सत्त्वाः , अब्जीवाः तथाग्निः । वायुजीवाः पृथक् सत्त्वाः, तणा रूक्षाः सबीजकाः॥ ७. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और बीज पर्यन्त" तृण और वृक्ष-ये सब जीव पृथक् सत्व (स्वतंत्र अस्तित्व) वाले हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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