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आमुख
प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'मार्ग' है। भगवान् महावीर ने अपनी साधना पद्धति को 'मार्ग' कहा है । आगमों के अनेक स्थलों में साधना के लिए 'मार्ग' (प्रा० मग्ग) का प्रयोग मिलता है। जैसे
• एस मग्ने आरिएहि पहए (आयारो २०४७ मादि)
० णत्थि मग्गे विरयस्स (आयारो ५/३० )
o
बुरणचरो मग्गो (आयारो ४/४२ )
• देवालय (सूत्र० १।२।२३ )
•
सूत्र० १० २०६६)
उत्तराध्ययन सूत्र में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को 'मार्ग' कहा है।' आवश्यक सूत्र में निर्ग्रन्थ प्रवचन को सिद्धिमार्ग मुक्तिमार्ग, निर्वाणमार्ग, निर्यानमार्ग, समस्त दुःखों (क्लेशों ) को क्षीण करने का मार्ग कहा है । स्थानांग में मार्ग के अर्थ में द्वार शब्द प्रयुक्त है -- चत्तारि धम्म दारा पण्णत्ता - खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे-धर्म के चार द्वार (मार्ग) हैं—क्षांति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव ।
यही भगवान् महावीर की साधना पद्धति है, मार्ग है । यही भावमार्ग है । भावमार्ग दो प्रकार का होता है-
प्रशस्तभावमार्ग - सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग् चारित्र । इसका फल है सुगति । यह मार्ग तीर्थंकर, गणधर स्थविर तथा साधुओं द्वारा अनुचीर्ण सम्यग् मार्ग है ।
अप्रशस्तभावमार्ग - मिथ्यात्व अविरति, अज्ञान । इसका फल है दुर्गति। यह मार्ग चरक, परिव्राजक आदि द्वारा अनुचीर्ण
मियामार्ग है।
नियुक्तिकार
प्राप्ति के प्रसंग में द्रव्यमार्ग और भावमार्ग की चतुभंगी का उल्लेख किया है—
१. द्रव्यमार्ग
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१. क्षेम और क्षेमरूप - चौर, सिंह आदि के उपद्रव से रहित तथा वृक्ष तथा जलाशयों से समन्वित ।
२. क्षेम और अक्षेमरूप - उपद्रव रहित तथा पत्थर, कंटक, नदी-नालों से आकीर्ण, विषम ।
३. अक्षेम और क्षेमरूप — उपद्रव सहित पर अविषम, सीधा और साफ ।
४. अक्षेम और अक्षेमरूप-उपद्रव सहित तथा विषम ।
२. भावमार्ग
१. क्षेम-क्षेमरूप ज्ञान आदि से समन्वितमुनिवेधारी साधु ।
२. क्षेम-अमरूप भावसाधु यतिन से रहित ।
३. अक्षेम-क्षेमरूप निन्हव ।
४. अम-अमरूप परतीचिक, गृहस्थ आदि ।'
१. उत्तरम्भयणाणि, २८२ ।
२ आवश्यक ४।६ ।
३. ठाणं ४।६२७ ॥
४. चूर्ण, पृ० १४ ।
५. नियुक्ति गाथा १०४ : खेमे य खेमरूवे चडउक्कगं मग्गमादीसु । ६. चूर्ण, पृ० १९४ ।
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