SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूयगडो १ ४५३ १. वक्रता, टेढ़ापन | २. गति करना, मुड़ना । ३. माया । वलय ( वक्रता) दो प्रकार का होता है । १. द्रव्य वलय — शंख का वलय । २. भाव वलय – आठ प्रकार के कर्म, जिनसे प्राणी बार-बार संसार में परिभ्रमण करता है । १. संसार के वलय से मुक्त । २. कर्म - बंधन से मुक्त | 'वलय विमुक्के' का अर्थ है – कर्म - बंधन से विमुक्त | जब हम वलय से 'माया' का अर्थ ग्रहण करते हैं, तब इसका अर्थ होगा - माया से विमुक्त । क्रोध, मान, आदि से मुक्त मुनि को भी वलय से विमुक्त कहा जा सकता है ।" वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए है' अध्ययन : १० टिप्पण ८३ Jain Education International १. चूर्ण, पृ० १६२ : वलयं वक्रमित्यर्थः, द्रव्यवलयं शङ्खकः, भाववलयं अष्टप्रकारं कर्म्म येन पुनः पुनर्वलति संसारे । वलयशब्दो हि बफतायां भवति गतौ च बतायां पालितस्तन्तु बलिता म्युरित्यादि तो बलत पासवसति सार्थ इत्यादि । वलयविमुक्त इति कर्मबंधन विमुक्तः । अथवा वलय इति माया तया च मुक्तः । एवं क्रोधादिमाणविमुक्त इति । २. वृत्ति पत्र १२७ बलपात्'संसारबलात् कर्मबन्धनाद्वा विप्रयुक्तः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy