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सूयगडौ १
अध्ययन ८ : प्रामुख तीन प्रकार की होती है । इस आधार पर पंडित वीर्य के तीन भेद होते हैं ।'
चौथे श्लोक की व्याख्या में चूर्णिकार और वृत्तिकार ने धनुर्वेद, दंडनीति, चाणक्यनीति आदि की मान्यताएं, शिक्षाएं प्रस्तुत की हैं । चूणिकार ने 'हंभीमासुरुक्खं, कोडल्लग'-इन ग्रन्थों तथा 'अथर्वण' का विषय निर्दिष्ट किया है।
प्रस्तुत अध्ययन के कुछेक महत्त्वपूर्ण शब्द हैं-ठाणी (श्लोक १२), वुसीमओ (श्लोक २०), झाणजोगं (श्लोक २७) । इनकी व्याख्या के लिए देखें-टिप्पण ।
१. भाववीर्य के संपूर्ण विवरण के लिए देखें, चणि पृ० १६४-१६५ तथा वत्ति पत्र १६६-१६८ । २. चूणि, पृ० १६६ ।
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