________________
३४४
सूयगडो १
अध्ययन ७: टिप्पण ६२-६४ ६२. ऊदबिलाव (उद्दा)
'उद्द' देशीशब्द है । इसका अर्थ है-ऊदबिलाव ।
वृत्तिकार ने 'उट्टा' पाठ मानकर इसका अर्थ उष्ट्र- जलचर विशेष किया है। किन्तु लिपिदोष के कारण उद्दा का उट्टा पाठ बन गया । वृत्तिकार को वही पाठ मिला, इसलिए इसका अर्थ उष्ट्र किया। चूर्णिकार के सामने शुद्ध पाठ 'उद्दा' था। उनके अनुसार इसका अर्थ है-ये बिल्ली के परिमाण वाले जलचर प्राणी बड़ी नदियों में डूबते-तैरते हुए पाए जाते हैं। इन्हें उदबिल व कहा जाता
___ आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि नाममाला में ऊदबिलाव के चार नाम दिए हैं उद्र, जलमार्जार, पानीयनकुल और
वसी।
मराठी में इसे जलमाजर कहा जाता है ।
यह नेवले के आकार का उससे बड़ा एक जंतु है, जो जल और स्थल दोनों में रहता है। यह प्रायः नदी के किनारों पर पाया जाता है। इसके कान छोटे, पंजे जालीदार, नाखून टेढ़े और पूंछ कुछ चिपटी होती है। रंग इसका भूरा होता है । यह पानी में जिस स्थान पर डूबता है, वहां से बड़ी दूर पर और बड़ी देर के बाद उतराता है। इसका मुख्य भोजन है मछलियां । जब इसे मछलियां नहीं मिलतीं, तब यह भूमी पर इधर उधर घूमकर खरगोश, चूहे आदि छोटेछोटे जानवरों को मारकर खा जाता है। प्रारम्भ में इसके बच्चे पानी से बहुत डरते हैं। मां अपने बच्चों को फुसलाकर नदी के किनारे ले जाती है और उन्हें पीठ पर बिठाकर नदी में तैरने लग जाती है। उथले पानी में जाकर वह उन्हें पीठ से नीचे गिरा देती है । बच्चे रोते-चिल्लाते हैं । मां की दृष्टि बच्चों पर रहती है। धीरे-धीरे वे तैरना सीख जाते हैं। बड़े होकर वे पानी में कलाबाजियां करते हुए लम्बे समय तक तैरते रहते हैं । लोग इसको पालतू जानवर की भांति पालते हैं और मछलियां पकड़वाने का काम लेते हैं। यह झील या तालाब में कूदकर मछलियों को एक कोने में हांक लाता है और तब उसका स्वामी मछलियां पकड़ लेता है। यह बड़ा होशियार और विनोदी होता है।'
६३. जलराक्षस (दगरक्खसा)
ये मनुष्य की आकृति वाले जलचर प्राणी हैं जो नदी और समुद्रों में रहते हैं।' हिन्दी शब्द-सागर में जल-राक्षसी का उल्लेख इस प्रकार हैजल में रहने वाली राक्षसी जो आकाशगामी जीवों की छाया से उन्हें अपनी ओर खींच लेती है।
श्लोक १६ :
६४. यदि (जत्ती)
यहां छन्द की दृष्टि से दीर्घ ईकार का प्रयोग है। इसका अर्थ है-यदि । १. वृत्ति, पत्र १६० : तथोष्ट्रा-जलचरविशेषाः । २. चूणि, पृ० १५८ : उद्दा णाम मज्जारप्पमाणा महानदीषु दृश्यन्ते उम्मुज्जणिमुज्जियां करेमाणा। ३. अभिधान चिन्तामणि कोष ४१४१६ : उद्रस्तु जलमार्जारः पानीयनकुलो वसी। ४. देखें-नवनीत; ६२, मई, नरेन्द्र नायक का लेख-जल का शिकारी ऊदबिलाव । ५ (क) चूणि, पृ० १५८ : वगरक्खणा मनुष्याकृतयो नदीषु च भवन्ति ।
(ख) वृत्ति, पृ० १६० : तयोदकराक्षसा-जलमानुषाकृतयो जलचरविशेषाः । ६ हिन्दी शब्द सागर।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org