________________
आमुख
प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'कुशील - परिभाषित' है।' इसमें कुशील के स्वभाव, आचार-व्यवहार, अनुष्ठान और उसके परिणाम को समझाया गया है । चूर्णिकार के अनुसार इसमें कुशील और सुशील - दोनों परिभाषित हैं। जिनका शील- आचार या चारित्र धर्मानुकूल नहीं है, वे कुशील कहलाते हैं । मुख्यतः कुशील चार प्रकार के हैं
१. परतीर्थिक कुशील - अन्य धर्म संप्रदायों के शिथिल साधु 1
२. पार्श्वपत्यिक कुशील पार्श्व की परंपरा के शिथिल साधु । ३. निथ कुशील महावीर की परंपरा के शिथिल साधु 1 ४. गृहस्थ कुशील - अशील गृहस्थ ।
इसमें कुशील का वर्णन ही नहीं, सुशील का वर्णन भी प्राप्त है। इसमें तीस श्लोक हैं। उनका वर्ण्य विषय इस प्रकार है
श्लोक १ से ४ - सामान्यतः कुशील के कार्य और परिणाम ।
५-६
१०-११
१२-१८
१६-२०
२१
२२
२३-२६
२७-३०
पाषण्ड कुशीलों का वर्णन । कुशील का फल -विपाक
कुशील दर्शनों की मान्यताबों का निरूपण कुशील दर्शनावलंबियों का फल -विपाक
निग्रन्थ धर्म में दीक्षित कुशील का लक्षण । सुशील का अनुष्ठान ।
पार्श्वस्थ कुशीलों का आचार-व्यवहार ।
सुशील के मूलगुण और उत्तरगुणों का प्रतिपादन ।
'शील' शब्द के चार निक्षेप हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव
द्रव्यशील - जो केवल आदतन क्रिया करता है, उसके फल के प्रति निरपेक्ष होता है, वह उसका शील है, जैसे- कपड़ा ओढने का प्रयोजन प्राप्त न होने पर भी जो सदा कपड़े ओढे रहता है, या जिसका ध्यान कपड़ो में केन्द्रित रहता है, वह प्रावरणशील कहलाता है । इसी प्रकार मण्डनशील स्त्री, भोजनशील, स्निग्ध भोजनशील, अर्जनशील आदि द्रव्यशील के उदाहरण हैं ।
द्रव्यशील का दूसरा अर्थ है - चेतन या अचेतन द्रव्य का स्वभाव । जैसे - मादकता मदिरा का स्वभाव है और मेधा - वर्धन और सुकुमारता घी का स्वभाव है । "
भावशील के मुख्यतः दो प्रकार हैं
१. घोषभावशील पाप कार्यों से संपूर्ण विरत अथवा विरत-अविरत
२. अभीक्ष्ण्यसेवनाशील - निरंतर या बार-बार शील का आचरण करने वाला ।
Jain Education International
भावशील के दो प्रकार और होते हैं
१. प्रशस्त भावशील धर्मशील। अप्रशस्त ओघभावशील - पापशील ।
१. भूमि पृ० १५१ इदानीं कुशलपरिभासितं ति
२. वही, पृष्ठ १५१ : जस्थ कुसीला सुसीला य परिभासिज्जति ।
३.
४. निक्तिगाथा, ७१ सीते चक्क दबे पाउरणा-मरण-भोयगावी
१५२शीला: परतीचिकाः पार्श्वस्यादयो वा स्वपूच्या अशीलाश्च गृहस्वाः ।
५. चूर्ण, पृ० १५१ ।
६. वही पृष्ठ १५१ यो वा यस्य द्रव्यस्य स्वभावः तद् द्रव्यं तच्छीलं भवति, यथा— मदनशीला मदिरा, मेध्यं घतं सुकुमारं चेत्यादि ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org