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________________ सुगडा चलाते थे । ' इसकी व्याख्या वूसरे नय से भी की जा सकती है । भगवान् महावीर से पूर्व भगवान् पार्श्व चतुर्याम धर्म का प्रतिपादन कर रहे थे । उसमें स्त्री-त्याग या ब्रह्मचर्य तथा रात्रि भोजन- विरति- इन दोनों का स्वतंत्र स्थान नहीं था । भगवान् महावीर ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया। उसके साथ छठे रात्री भोजन-विरति व्रत को जोड़ा। ये दोनों भगवान् महावीर द्वारा दिए गए आचारशास्त्रीय विकास हैं । प्रस्तुत श्लोक में उसी की जानकारी दी गई है । ६७. साधारण और विशिष्ट ( अपरं परं ) २१२ चूर्णिकार ने दो प्रकार के लोक माने हैं-' १. अपरलोक - मनुष्यलोक । २. परलोक - नरकलोक, तिर्यञ्चलोक और देवलोक । वृत्तिकार ने इसके स्थान पर 'आरं परं' या 'आरं पारं ' शब्द मान कर 'आरं' का अर्थ इहलोक, मनुष्यलोक और परं या पारं का अर्थ परलोक, नारक आदि लोक किया है । अव्ययन ६ टिप्पण ७-८ वस्तुतः ये अर्थ केवल शाब्दिक हैं। पूरे प्रसंग के संदर्भ में अपर का अर्थ साधारण लोग और पर का अर्थ विशिष्ट लोग होना चाहिए । मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - अव्युत्पन्न और व्युत्पन्न अथवा अज्ञ और विज्ञ । अज्ञ मनुष्य संक्षेप को समझ नहीं पाते। उनके लिए विस्तार आवश्यक होता है। विज्ञ के लिए विस्तार अपेक्षित नहीं होता । चतुर्याम धर्म अल्प विभाग वाला प्रतिपादन था । अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य - दोनों एक हैं—यह बात विज्ञ के लिए सहजगम्य हो सकती है, किन्तु अज्ञ मनुष्य इसे नही समझ सकता । इस बुद्धि क्षमता को ध्यान में रखकर भगवान् महावीर ने ब्रह्मचर्य महाव्रत को अपरिग्रह महाव्रत से पृथक् कर दिया। इसी प्रकार रात्रीभोजनविरति व्रत को अहिंसा महाव्रत से पृथक् कर दिया। अपर और पर के विभाग की पुष्टि केशी- गौतम संवाद से भी होती है। वहां इस विभाग के कारण ऋजु जड और वक्र जड तथा ऋजु-प्रज्ञ पुरुष बतलाए गए हैं।' ऋजु-जड और वक्र-जड अपर श्रेणी के लोग हैं और ऋजु-प्रज्ञ पर श्रेणी के लोग हैं । ८. सर्ववर्जी प्रभु ने वर्जन किया ( सव्वं प्रभु ने सव्ववारी) चूर्णिकार ने सर्व वारी का अर्थ - सब वर्जनीयों का वर्जन करने वाला किया है।" वृत्तिकार ने 'सव्ववारं ' पाठ मान कर उसका अर्थ - - बहुश: किया है।" मन्झिमनिकाय (उपालिमुत्त) में भगवान् महावीर को चातुसंत सर्ववारिवारित, सर्वचारित और सर्ववारिस्पृष्ट बतलाया है । मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा में 'सव्ववारिवारितो' के दो अर्थ किए हैं Jain Education International १. वारितसब्बउदक - जिसने सभी प्रकार के पानी के विषय में संयम कर लिया है । २. सब्वेन पापवारणेन वारितपापो - सर्व पाप को वारित करने के कारण पापों का वारण करने वाला । आई. बी. हॉरनर ने मज्झिमनिकाय के अनुवाद में उपरोक्त चारों पदों का अर्थ इस प्रकार किया है- ' १. आचारांग पूर्ण ० २० अकासूर्य आहारं राभतं च बहारेंतो बंधवारी २. चूर्ण, पृ० १५० : अपरो लोको मनुष्यलोकः परस्तु नरक- तिर्यग्-देवलोकः । ३. वृत्ति, पत्र १५२: आरम् इहलोकाख्यं परं परलोकाख्यं यदि वा आरं— मनुष्यलोकं पारमिति - नारकाविकम् । ४. उत्तरायणाणि, २३।२६ : पुरिमा उज्जुजडा उ वंकजडा य पच्छिमा । मज्झिमा उज्जुपन्ना य तेण धम्मे दुहा कए । ५. चूर्णि पृ० १५० : सर्वस्मादकृत्या दात्मानं शिष्यांश्व वारितवानिति सर्ववारी, सर्ववारणशील इत्यर्थः । ६. वृत्ति, पत्र १५२: सर्ववारं बहुशः । ७. मज्झिमनिकाय, अट्ठकथा, III, ५८ । ८. Middle Length Saying II Pages ४१, ४२ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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