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चूर्णि
निर्युक्ति के पश्चात् दूसरा व्याख्या-ग्रन्थ चूर्णि है । वह सूत्र के आशय को प्रकट करने में बहुत महत्त्वपूर्ण है । यह गद्यात्मक है और इसकी भाषा प्राकृत संस्कृत का मिश्रितरूप है। इसके कर्ता जिनदाराणि माने जाते हैं। किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से यह समीक्षाणीय है । प्रस्तुत चूर्णि की शैली आचारांगचूर्णि के समान है। चूर्णिकार ने एक स्थान पर यह उल्लेख भी किया है 'ये द्वार जैसे आचार और कल्प (की चूणि) में प्ररूपित हैं, वैसे ही यहां प्ररूपित करने चाहिए ।" इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आचार, कल्प और सूत्रकृतांग की चूर्णियां एककर्तृक हैं । आचारांग और उत्तराध्ययन की चूर्णि का कर्ता एक ही व्यक्ति होना चाहिए, इसकी चर्चा हमने 'आयारो तह आयारचूला' की भूमिका में की है ।"
वृत्ति
यह तीसरा महत्वपूर्ण व्याख्या-ग्रन्थ है। इसमें स्थान-स्थान पर विषय का विशद विवेचन हुआ है। इसकी भाषा संस्कृत है । इसके कर्ता शीलांकसूरि हैं। इनका अस्तित्वकाल ई० ८वीं शती माना जाता है।" वृत्ति के प्रारम्भ में उन्होंने उसके निर्माण का प्रयोजन बतलाया है और पूर्ववृत्ति का संकेत किया है । प्रारम्भिक श्लोक इस प्रकार हैं
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विवरण
स्तबक
स्वपरसमयार्थं सूचकमनन्तगमपर्ययार्थगुणकलितम् । सूत्रकृतमङ्गमतुलं विवृणोमि जिनान्नमस्कृत्य ॥ १ ॥
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व्याख्यातङ्गमिह यद्यपि रित्या तथापि विवरीतुमहं यतिष्ये । कि पक्षिराजगतमित्यवगम्य सम्यक् तेनैव वाञ्छति पथा शलभो न गंतुम् ||२||
ये मय्यवज्ञां व्यधुरिद्धबोधा, जानन्ति ते किञ्चन तानपास्य । मत्तोऽपि यो मन्दमतिस्तथाऽर्थी, तस्योपकाराय ममैष यत्नः ॥३॥
१।३३, ३४, ३६, ४३, ५०, ५५, ६८, ७२, ७३, ७६ २१७, १८, ४/४५ ७ ११, १३, १५, १६,८८, १६, १६, २४; १७, २६; ११।१६, १७, ३२; १२।११, १३, १४।२२; १५।७ |
दीपिका
वृत्ति के अन्त में यह उल्लेख मिलता है कि प्रस्तुत वृत्ति शीलाचार्य ने वारिगणि की सहायता से की'कृता देवं शीलाचार्येण बाहरिगणसहायेन ।'
वृत्ति के अंतिम श्लोक में वृत्तिकार ने पाठक के कल्याण की कामना की है
raartaमत्र पुण्यं टीकाकारेण मया समाषिभृता ।
तेनापेततमस्को भव्यः कल्याणभाग् भवतु ॥
चूर्ण और वृत्ति में अनेक स्थलों में पाठभेद और अर्थभेद हैं । अर्थभेद के कुछ विशेष स्थल ये हैं
इसकी भाषा संस्कृत है । इसके कर्ता उपाध्याय साधुरंग हैं। इसका रचनाकाल ई० १५४२ है ।
इसकी भाषा संस्कृत है । इसके कर्ता हर्षकुल हैं । इसका रचनाकाल ई० १८२६ हैं ।
इसकी भाषा गुजराती है । इसके कर्ता पार्श्व चन्द्रसूरि है ।
उक्त तीनों (दीपिका, विवरण और स्तबक) व्याख्याग्रन्थ वृत्ति पर आधृत और संक्षिप्त हैं ।
१. सूत्रकृतांगचूर्ण, पृ० ५ एताणि दाराणि जहा आयारे कप्पे वा परूविताणि तथा परूवेयव्वाणि ।
२. आयारो तह आयारचूला, भूमिका पृ० ३० ।
३. आधारो तह आधारचूला, भूमिका, पृ० ३१।
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