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सूयगडो १
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अध्ययन ५ : टिप्पण २३-२६ इसकी तुलना 'बिल' से की है।'
वृत्तिकार ने 'कील' शब्द मानकर उसका अर्थ 'कंठ' किया है। संभव है यह भी देशी शब्द हो। 'कील' एक प्रकार का अस्त्र भी होता है। २३. नीचे भूमि पर गिरा देते हैं (अहे करेंति) नीचे भूमि पर गिरा देते हैं।' चूर्णिकार ने—'जल के नीचे या ओंधे मुंह कर देते हैं-यह अर्थ किया है।"
श्लोक १० २४. तीर की (कलंबुया)
संस्कृत शब्दकोष में 'कलम्ब' शब्द का अर्थ-नदी का तीर है।' २५. तपी हुई (मुम्मुरे)
देखें-दसवेआलियं ४। सूत्र २० का टिप्पण ।
श्लोक ११: २६. असूर्य (असूरियं)
असूर्य' नाम का नरकावास । ऐसा भी माना जाता है कि सभी नरकावास सूर्य से शून्य होते हैं, अत: उन सबको 'असूर्य' कहा जाता है।' २७. वहां घोर अंधकार है (अंधं तमं)
जैसे जन्मांध व्यक्ति के लिए रात और दिन-दोनों अंधकारपूर्ण होते हैं, वैसे ही उस नरक में नैरयिकों के लिए सदा अंधकार ही रहता है। २८. निरन्तर (समाहिओ)
इसका अर्थ है-एकीभूत, निरंतर । वृत्तिकार ने इसका अर्थ-व्यवस्थापित किया है।" २६. आग (अगणी)
चूर्णिकार ने इसका अर्थ-काली आभा वाला अग्निकाय किया है । वह अचेतन होता है।" १. चूणि, पृ० १२८ : कोलं नाम गलओ । उक्तं हि –कोलेनानुगतं बिलम् । भुजङ्गवद् । २. वृत्ति, पत्र १२६ : कोलेषु कण्ठेषु । ३. पाइयसद्दमहण्णवो। ४. वृत्ति, पत्र १२६ : अधोभूमौ कुर्वन्तीति । ५. चूणि, पृ० १२८ : अधे हेद्वतो जलस्स अधोमुखे वा। ६ आप्टे संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी। ७. (क) चूणि, पृ० १२६ : यत्र सूरो नास्ति, अथवा सर्व एव नरका: असूरिकाः । (ख) वृत्ति, पत्र १३० : न विद्यते सूर्यो यस्मिन् सः असूर्यो-नरको बहलान्धकारः कुम्मिकाकृति। सर्व एव वा नरकावासोऽसूर्य इति
व्यपदिश्यते । ८. चूणि, पृ० १२६ : यथा जात्यन्धस्य अहनि रात्रौ च सर्वकालमेव तम एवं तत्रापि स तु अगाधगुहासदृशः। ६ चूणि, पृ० १२६ : समाहितो सम्यग् आहितः समाहितः एकीभूतः निरन्तर इत्यर्थः । १०. वृत्ति, पत्र १३० : समाहितः सम्यगाहितो व्यवस्थापितः । ११. गि, पृ० १२६ : तस्य कालोभासी अचेयणो अगणिक्कायो ।
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