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सूयगडो १
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अध्ययन ४: प्रामुख
महत्त्वपूर्ण है । उनके स्थल इस प्रकार हैं
चूणि, पृष्ठ : १०३, १०४-१०७, १०६, ११०, ११२, ११३, ११५, ११६-१२१ । वृत्ति, पत्र १०५-१२० ।
प्रस्तुत अध्ययय के दूसरे उद्देशक में प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का भी सुन्दर वर्णन हुआ है । पथच्युत मुनि से स्त्री क्या-क्या कार्य करवाती है, क्या-क्या मंगाती है और उसको पुत्र-पालन के लिए कैसे प्रेरित करती है-इनका सजीव वर्णन हुआ है । रोते बालक को शान्त करने के लिए उस मार्ग-च्युत मुनि को 'लोरी' गानी पड़ती है। चूणि और वृत्तिकार ने उसका श्लोक प्रस्तुत किया है
'सामिओ मे णगरस्स य णक्कउरस्स य, हत्थवप्प-गिरिपट्टण-सीहपुरस्स य । अण्णतस्स चिण्णस्स य कंचिपुरस्स य,
कण्णउज्ज-आयामुह-सोरिपुरस्स य॥" श्लोक ग्यारह में सूत्रकार ने केवल स्त्रियों में धर्म कथा करने का वर्जन किया है। चूर्णिकार और वृत्तिकार ने इस औत्सर्गिक नियम में अपवाद का कथन भी किया है । उत्तराध्ययन सूत्र (अध्ययन १६) में भी केवल स्त्रियों में धर्मकथा करने का वर्जन मिलता है।
श्लोक चार के 'णिमंतेति' शब्द की व्याख्या में चूर्णिकार और वृत्तिकार ने एक मनोवैज्ञानिक तथ्य प्रगट किया हैस्त्रियां सधवा हों या विधवा, उनकी ऐसी मनःस्थिति है कि आसपाम रहने वाले कूबडे या अन्धे व्यक्ति से भी कामवासना की पूर्ति करने की प्रार्थना कर लेती है।
इसी प्रकार 'पासाणि' की व्याख्या में यह मनोवैज्ञानिक तथ्य उभरा है कि किसी को बांधना हो तो उसे अनुकूलता, अनुराग के पाश से बांधो। चूणि और वृत्ति में इसी आशय का एक प्रलोक उद्धृत हुआ है
'जं इच्छसि घेत्तुं जे पुग्वि ते आमिसेण गेण्हाहि ।
आमिसपासणिबद्धो काही कन्जं अकज्जं पि॥' -जिसको तुम पाना चाहते हो, उसे अनुराग से जीतो, पाने का प्रयत्न करो। अनुराग-स्नेह के पाश में बंधा हुआ व्यक्ति कार्य-अकार्य कुछ भी कर सकता है।
इस प्रकार इस अध्ययन में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य उपलब्ध हैं। इनसे कामवासना के परिणाम जानकर उनसे विरत होने की प्रबल प्रेरणा जागृत होती है।
१. (क) चूणि पृ० ११६ ।
(ख) वृत्ति पत्र ११६ । २. चूणि, पृ० १०४ : ता हि सन्निरुद्धा सधवा विधवा वा, आसन्नगतो हि निरुद्धाभिः कुब्जोऽन्धोऽपि च काम्पते, किमु यो सकोविदः? ३. चूणि, पृ० १०४ । वृत्ति, पत्र १०६ ।
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