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सूयगडो १
११७. शांति है (संति)
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चूर्णिकार ने शान्ति का अर्थ निर्वाण किया है । शान्ति, निर्वाण, मोक्ष और कर्मक्षय – ये एकार्थक हैं । वृत्तिकार ने इसका अर्थ कर्मदाह का उपशमन किया है।'
यही श्लोक ८ / १६ में है ।
१७७
विरति ही शान्तिरूप निर्वाण है या विरति से शान्तिरूप निर्वाण प्राप्त होता है या जो विरत है वह स्वयं शान्तिरूप
निर्वाण है।'
अध्ययन ३ टिप्पण ११७ :
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१. पू. १० १०० शान्तिरेव निर्वाणम
:
२. वृत्ति, पत्र १०१ शान्ति इति कर्मदाहोपशमः ।
:
२. नृणि, पृ०
१००
विरति एवं हि संतिष्याणमाहितं विरतोओ वा विरतस्स या संतिषेयाणमाहितं ।
"अहवा संति त्ति वा णेव्वाणं ति वा मोक्खो त्ति वा कम्मखयो त्ति वा एगट्ठ ।
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