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सूयगडो १
अध्ययन ३ : टिप्पण ६१ का सुन्दर संकलन है । इनके पिता का नाम 'युगबाहु' और माता का नाम 'मदनरेखा' था।'
२. रामपुत्र-ये पार्श्वनाथ के तीर्थकाल में होने वाले प्रत्येक-बुद्ध हैं । ऋषिभाषित के तीसवें अध्ययन में रामपुत्र अहं तर्षि के वचन संकलित हैं। इस गद्यात्मक अध्ययन में केवल तीन गद्यांश हैं । वृत्तिकार ने 'रामउत्ते' का संस्कृत रूप 'रामगुप्तः' दिया है । प्राकृत 'उत्त' शब्द के तीन संस्कृत रूप हो सकते हैं—उप्त, गुप्त, पुत्र ।
३. बाहुक-ये अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में होने वाले एक प्रत्येक-बुद्ध हैं।' ऋषिभाषित के चौदहवें अध्ययन में इनके सुभाषित संकलित हैं। यह अध्ययन भी गद्यात्मक है। नल का एक नाम बाहुक भी है।"
४. तारागण - ऋषिभाषित के छत्तीसवें अध्ययन में इनके विचार संकलित हैं। इसमें १७ पद्य हैं। प्रारंभ में उनके नाम के आगे 'वित्तण' शब्द है । ऋषिभाषित की संग्रहणी गाथा में इनका उल्लेख 'वित्त' नाम से किया है। किन्तु 'वित्त' शब्द उनका विशेषण होना चाहिए। वित्त का अर्थ है-संपदा । मुनि की संपदा है-ज्ञान, दर्शन, चारित्र। वृत्तिकार ने 'नारायण' पाठ माना है।"
५. आसिल-देविल -ऋषिभाषित के तीसरे अध्ययन का नाम 'दविलज्झयणा' है। प्रारंभ में 'असिएण दविलेणं अरहता इसिणा बुइतं-ऐसा पाठ है । यहां ऋषि का नाम 'दविल' है और 'असिय' (असित) उनका गौत्र हो सकता है, ऐसा मुनि पुण्यविजयजी ने माना है। वृत्तिकार ने 'आसिल' और 'देविल' को पृथक्-पृथक् ऋषि माना है। ये अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में होने वाले प्रत्येक बुद्ध हैं।" महाभारत के अनेक स्थलों में 'असितदेवल' नामक प्रसिद्ध ऋषि का नामोल्लेख प्राप्त है। इससे संभावना की जा सकती है कि 'असितदेविल'-यह एक ऋषि का नाम था।
याज्ञवल्क्यस्मृति की अपरादित्य रचित व्याख्या" में देवल ऋषि का संवाद उद्धृत है। महाभारत के शान्तिपर्व में देवलनारद संवाद का भी उल्लेख प्राप्त है। वृद्ध देवल के सम्मुख उपस्थित होकर नारद ने भूतों की उत्पत्ति और प्रलय के विषय में जिज्ञासा प्रगट की थी। महर्षि देवल ने उनका समाधान दिया। इसी प्रकार वायुपुराण में भी देवल के उद्धरण प्राप्त होते हैं। ये सांख्य दर्शन के एक आचार्य के रूप में प्रसिद्ध थे जो सांख्यकारिका के रचयिता ईश्वरकृष्ण से पहले हो चुके थे।" १. विशेष विवेचन के लिए देखें- उत्तरज्झयणाणि, नौंवा अध्ययन । २. उत्तरज्झयाणाणि भाग १, पृ० १०६।। ३. इसिभासियाई २३ वा अध्ययन ....... रामपुत्तेण अरहता इसिणा बुइतं । ४. वृत्ति, पत्र ६६ : रामगुप्तश्च । ५. उत्तरज्झयाणाणि, भाग १, पृ० १०६ । ६, इसिभासियाई, १४ वां अध्ययन ....... 'बाहुकेण अरहता इसिणा बुइतं । ७. महाभारत, वनखंड ६६।२० । ८.६. इसिभासियाई, अध्ययन ३६ : वित्तेण तारायणेण अरहता इसिणा बुइतं । १०. इसिभासियाई संगहिणी गाथा ५ :........ अद्दालए य वित्ते य । ११. वृत्ति पत्र ६६ : नारायणो नम महर्षि।। १२. चूणि, पृ० ६५, फुटनोट नं ८ : अत्र पाठे असिएणं इति गोत्रोक्तिवर्तते न पृथगृषिनाम । १३ वृत्ति, पत्र ६६ : आसिलो नाम महर्षिस्तथा देविलः । १४. उत्तरज्झयणाणि, भाग १, पृ० १०६ । १५. महाभारत को नामानुक्रमणिका, पृ० २६ । १६. याज्ञवल्क्यस्मृति, प्रायश्चित्ताध्याय, श्लोक १०९ पर। १७. वायुपुराण, अध्ययन ६६, श्लोक १५१, १५२ । १८. सांख्यकारिका ७१, माठरवृत्ति : कपिलादासुरिणा प्राप्तमिदं ज्ञानं ततः पञ्चशिखेन तस्माद् भार्गवोलकवाल्मीकि-हारित-देवल
प्रभृतीनामागतम् । ततस्तेभ्य ईश्वरकृष्णेन प्राप्तम् ।
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