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११. मग्गे (मार्ग) १२. समोसरणं (समवसरण) १३. आहत्तहीयं (याथातथ्य) १४. गंथो (ग्रन्थ) १५. जमईए (यमकीय) १६. गाहा (गाथा)
, २७
दूसरा श्रुतस्कंध उद्देशक
अध्ययन
रचना-बन्ध
परिमाण
गद्य
सूत्र ७२
, १०२
१. पोंडरीए (पौण्डरीक) २. किरियाठाणे (क्रियास्थान) ३. आहारपरिण्णा (आहारपरिज्ञा) ४. पच्चक्खाणकिरिया (प्रत्याख्यानक्रिया) ५. आयारसुयं (आचारश्रुत) ६. अद्दइज्ज (आर्द्रकीय) ७. णालंदइज्ज (नालंदीय)
श्लोक ३३
सूत्र ३८
प्रस्तुत आगम की पद संख्या ३६ हजार बतलाई गई है।
धवला में भी इसकी पद संख्या यही निर्दिष्ट है। किन्तु धवला और जयधवला दोनों में भी इसके दो श्रुतस्कंध होने का उल्लेख नहीं है और न अध्ययनों की संख्या का भी उल्लेख है।'
विषय-वस्तु
समवाय तथा नंदी में प्रस्तुत आगम के प्रतिपाद्य विषय का उल्लेख मिलता है । समवाय के अनुसार सूत्रकृतांग में स्वसमयपरसमय की सूचना, जीव-अजीव की सूचना, लोक-अलोक तथा जीव-अजीव आदि नौ पदार्थों की सूचना दी गई है।
नवदीक्षित श्रमणों की दृष्टि परिमार्जित करने के लिए १८० क्रियावादी दर्शनों, ८४ अक्रियावादी दर्शनों, ६७ अज्ञानवादी दर्शनों और ३२ विनयवादी दर्शनों की व्यूह-रचना कर स्वसमय की स्थापना की गई है।
नंदी में प्रतिपाद्य विषय का विवरण संक्षिप्त है। उसमें जीव-अजीव आदि नौ पदार्थों की सूचना का उल्लेख नहीं है। उसमें स्वसमय की स्थापना का उल्लेख है, किन्तु नवदीक्षित की दृष्टि परिमार्जित करने की कोई चर्चा नहीं है।
प्रस्तुत आगम मूलतः आचार-शास्त्र है । 'अंग और अनुयोग' शीर्षक में यह बताया जा चुका है। आचार की पृष्ठभूमी को समझाने के लिए दूसरे दार्शनिकों की दृष्टियों का निरूपण किया गया है, वह प्रासंगिक है, किन्तु मौलिक विषय आचार-निरूपण
निर्यक्तिकार ने सूत्रकृत के प्रत्येक अध्ययन के विषय का प्रतिपादन किया है। उससे भी इसका मुख्य विषय आचारशास्त्रीय प्रमाणित होता है।
१. समवाओ, पहण्णगसमवाओ, सू०६० : छत्तीसं पदसहस्साई पयग्गेणं । २. (क) षट्खंडागम, धवला, भाग १, पृ० ६६ ।
(ख) कसायपाहुड, जयधवला, भाग १, पृ० १२२ । ३. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०६०। ४. नंदी, सू० ८२।
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