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[१८] अंग और अनुयोग
द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं१. चरणकरणानुयोग
३. गणितानुयोग २. धर्मकथानुयोग
४. द्रव्यानुयोग चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार-शास्त्र) है। शीलांकसूरी ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्यशास्त्र) की कोटि में रखा है । उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सूत्रकृतांग प्रधान तया द्रव्यानुयोग है।'
समवाय तथा नंदी में द्वादशांगी का विवरण दिया हुआ है । वहां सभी अंगों के विवरण के अंत में 'एवं चरणकरणपरूवणया' पाठ मिलता है । अभयदेवसूरी ने 'चरण' का अर्थ श्रमणधर्म और 'करण' का अर्थ पिण्डविशुद्धि, समिति आदि किया है।'
चूर्णिकार ने कालिकश्रुत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवाद को द्रव्यानुयोग माना है।'
द्वादशांगी में मुख्यतः द्रव्यशास्त्र दृष्टिवाद है । शेष अंगों में द्रव्य का प्रतिपादन गौण है । द्रव्यशास्त्र में भी गौणरूप में आचार का प्रतिपादन हुआ है । चूर्णिकार ने मुख्यता की दृष्टि से प्रस्तुत आगम को आचारशास्त्र माना है और वह उचित भी है। वृत्तिकार ने इसमें प्राप्त द्रव्य विषयक प्रतिपादन को मुख्य मानकर इसे द्रव्यशास्त्र कहा है । इन दोनों वर्गीकरणों में सापेक्ष दृष्टिभेद है । आकार और प्रकार
प्रस्तुत आगम के दो श्रुतस्कंध हैं । समवाय और नंदी में इसका उल्लेख मिलता है। प्रथम श्रुतस्कंध के सोलह और द्वितीय श्रुतस्कंध के सात अध्ययन हैं। इसका उल्लेख समवाय, नंदी, उत्तराध्ययन और आवश्यक में है। उनका विवरण इस प्रकार है
प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन
उद्देशक रचनाबन्ध
परिमाण १. समए (समय)
श्लोक ८८ २. वेयालिए (वैतालीय) ३. उवसग्गपरिण्णा (उपसर्गपरिज्ञा) ४. इत्थीपरिण्णा (स्त्रीपरिज्ञा) ५. णरयविभत्ती (नरकविभक्ति) ६. महावीरत्थुई (महावीरस्तुति) ७. कुसीलपरिभासितं (कुशीलपरिभाषित) ८. वीरियं (वीर्य)
२७ ६. धम्मो (धर्म) १०. समाही (समाधि)
, २४
"८२
१. सूत्रांगचूणि, पृ० ३ : इह चरणाणुओगेण अधिकारो। २. सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र १ : तत्राचाराङ्ग चरणकरणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्येन सूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग
व्याख्यातुमारभ्यते। ३. समवायागंवृत्ति, पत्र १०२ : चरणम्-व्रतधमणधर्मसंयमाद्यनेकविधम् । करणम्-पिण्डविशुद्धिसमित्याद्यनेकविधम् । ४. सूत्रकृतांगचूणि, पृ० ३ : कालियसुयं चरणकरणाणुयोगो, ........... दिट्ठिबातो दवाणुजोगोत्ति । ५. (क) समवाओ, पहण्णगसमवाओ, सू०६०। ।
(ख) नंदी, सू० ८२। ६. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०६० ।
(ख) नंदी, सू०५२। (ग) उत्तराध्ययन ३१/१६ । (घ) आवश्यक अध्ययन ४॥
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