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सूयगडो १
१७. एए भो कसिणा फासा
फरुसा
दुरहियासया । हत्थी वा सरसंवीता कीवा वसगा गया गिहं ॥ १७ ॥
—ति प्रेमि ॥
१८. अहिमे सुहुमा संगा भिक्खूणं जे दुस्तरा । जत्य एमे बिसीयंति ण चयंति जवित्तए |१| १६. अप्पे णायओ दिस्स
रोयंति परिवारिया । पोसणे तात! पुट्टो सि करस तात ! जहासि थे |२|
२०. पिया ते थेओ तात ! ससा ते खुड्डिया इमा । भायरो ते सवा तात ! सोयरा कि जहासि मे ? ॥३॥ २१. माय पियरं पोस एवं लोगो भविस्सइ । एवं खु लोइयं तात ! जे पालेति उ मायरं ॥४
२२. उत्तरा
महुरुल्लावा पुत्ता ते तात ! खुड्डया | भारिया ते णवा तात ! मा सा अण्णं जणं गमे ॥ ५ ॥
२३. एहि तात ! घरं जामो
मा तं कम्म सहा वयं । बीयं पि ताव पासामो जामु ताव सयं गिहं | ६ | २४. तुं तात ! पुणाप्रगच्छे
ण तेणाऽसमणो सिया । अकामगं परक्कमंत को तं वारेउमरहद ? 1७1
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एते भोः! कृत्स्ना स्पर्शाः, परुषाः दुरध्यासकाः । हस्तिनः इव शरसंवीताः, क्लीबाः वशकाः गताः गृहम् ॥
इति ब्रवीमि ॥
बोश्रो उद्देसो : दूसरा उद्देशक
अथ इमे सूक्ष्मा: संगाः, भिक्षूणां ये दुरुतराः । यत्र एके विषीदन्ति न शक्नुवन्ति यापयितुम् ॥
अप्येके ज्ञातीः दृष्ट्वा, रुदन्ति परिवार्य । पोषय नः तात ! पुष्टोऽसि, कस्मै तात ! जहासि नः ॥
पिता ते स्थविरकस्तात !, स्वसा ते क्षुद्रिका इयम् । भ्रातरस्ते श्रवास्तात !, सोदराः किं जहासि नः ॥
मातरं
पितरं पोषय, एवं लोको भविष्यति । एवं खलु लौकिकं तात !, ये पालयन्ति तु मातरम् ॥
उत्तरा मधुरोल्लापाः, पुत्रास्ते तात ! क्षुद्रकाः । भार्या ते नवा तात !, मा सा अन्यं जनं गच्छेत् ॥
प्र० ३ : उपसर्गपरिज्ञा : ग्लो० १७-२४
१७. हे वत्स ! ये सारे स्पर्श (परिषह) कठोर और दुःसह हैं। इनसे विवश होकर पौहीन भिक्षु वैसे हो पर लौट आता है जैसे (संग्राम में) बाणों से बींधा हुआ हाथी ।
एहि तात ! गृहं यामः, मा त्वं कर्मसहाः वयम् । द्वितीयमपि तावत् पश्यामः, यामः तावत् स्वकं गृहम् ॥ गत्वा तात ! पुनरागच्छे, न तेन अश्रमणः स्यात् । अकामकं पराक्रमन्तं, कस्त्वां वारयितुमर्हति ? ॥
- ऐसा मैं कहता हूं ।
१५. ये सूक्ष्म संग (ज्ञाति-संबंध ) " भिक्षुओं के लिये दुस्तर होते हैं। वहां कुछ विषाद को प्राप्त होते हैं, इन्द्रिय और मन का संयम करने में समर्थ नहीं होते ।
१६. कुछ ज्ञातिजन ( प्रब्रजित होने वाले या पूर्व - प्रव्रजित को) देखकर उसे घेर लेते हैं और रोते हुये कहते हैं—हे तात ! हमने तुम्हारा पोषण किया है, अब तुम हमारा पोषण करो। फिर तात ! तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो ?
२०. 'तात ! तुम्हारा पिता स्थविर" है । तुम्हारी यह बहिन छोटी है । तात ! तुम्हारे वे सगे भाई आज्ञाकारी हैं, फिर तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो ?'
२१. 'तात ! तुम माता-पिता का पोषण करो, इस प्रकार तुम्हारा लोक ( यह और पर सफल ) हो जायेगा ।" तात ! लौकिक आचार" भी यही है-मातापिता का पालन करना ।'
२२. 'तात ! तुम्हारे उत्तम और मधुरभाषी ये छोटेछोटे" पुत्र हैं । तात ! तुम्हारी पत्नी नवयौवना " है । वह दूसरे मनुष्य के पास न चली जाये ।
२३. 'आओ नात ! घर चलें। तुम काम मत करना । हम काम करने में समर्थ हैं ।" हम पुनः तुम्हें घर में देखना चाहते हैं । आओ, अपने घर चलें ।'
२४. 'तात ! घर जाकर तुम पुनः आ जाना | इतने मात्र से तुम अ-श्रमण नहीं हो जाओगे । निष्काम पराक्रम करने वाले तुमको कौन रोक सकेगा ?'
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