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________________ ६३ सूयगडो १ अध्ययन १: टिप्पण १२७ मुंडक उपनिषद् २/१ में कहा गया है कि ब्रह्मा से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से पानी, पानी से पृथ्वी उत्पन्न हुई। आकाश का एक गुण है शब्द । वायु में दो गुण हैं-शब्द और स्पर्श । अग्नि में तीन गुण हैं-शब्द, स्पर्श और वर्ण । पानी में चार गुण हैं-शब्द, स्पर्श, वर्ण और स्वाद । पृथ्वी में पांच गुण हैं-शब्द, स्पर्श, वर्ण, स्वाद और गंध । इनके विभिन्न मात्रा के मिश्रण से सृष्टि की रचना हुई। सुबाला उपनिषद् १११ में उल्लेख है कि ऋषि सुबाला ने ब्रह्मा से सृष्टि विषयक प्रश्न पूछा । ब्रह्मा ने कहा-पहले अस्तित्व था-ऐसा भी नहीं है, पहले अस्तित्व नहीं था-ऐसा भी नहीं है, पहले अस्तित्व था भी और नहीं भी-ऐसा भी नहीं है । सबसे पहले तमस् पैदा हुआ । उससे भूत उत्पन्न हुए। उनसे आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से अप् और अप् से पृथ्वी उत्पन्न हुई। उसके बाद अंडा उत्पन्न हुआ। एक वर्ष की परिपक्वता के बाद वह अंडा फूटा। ऊपर का भाग आकाश, नीचे का पृथ्वी और मध्य में दिव्य पुरुष । ............ उसने मृत्यु को उत्पन्न किया। वह तोन आंखों, तीन सिर ओर तीन पैरों से युक्त खंड परशु था। ब्रह्मा उससे भयभीत हो गया। मृत्यु उसी में प्रविष्ट हो गई । ब्रह्मा ने सात मानस-पुत्रों को जन्म दिया। उन्होंने सात पुत्रों को जन्म दिया। वे प्रजापति कहलाए। ...... स्मृतियों में सृष्टि की रचना विषयक चर्चा१. मनुस्मृति I, ५-१६ पहले केवल तमस् व्याप्त था। वह अविमृश्य, अतयं और अज्ञात था। ईश्वरीय शक्ति ने तमस का नाश किया। उसने अपने ही शरीर से विविध प्रकार के प्राणियों की रचना करने के लिए सबसे पहले पानी की सृष्टि की। उसमें अपना बीज बोया । वह बीज स्वर्ण-अंडे के रूप में विकसित हुआ। वह सूर्य जैसा तेजस्वी था। उस अंडे में स्वयं वह उत्पन्न हुआ। वह ब्रह्मा कहलाया। वही नारायण नाम से अभिहृत हुआ, क्योंकि पानी को 'नारा' (नारा के अपत्य) कहा गया है और वह पानी ब्रह्मा का प्रथम विश्रामस्थल था । सृष्टि का प्रथम कारण न सत् था, न असत् था। उससे जो उत्पन्न हुआ वह ब्रह्मा कहलाया। स्वर्ण-अंडे में वह दिव्य शक्ति एक वर्ष तक रही। अंडे के दो भाग हुए। एक भाग स्वर्ग बना और एक भाग पृथ्वी। इन दो के मध्य मध्यलोक, आठ दिशाएं और समुद्र बना। उस दिव्य शक्ति ने अपने से मन निकाला ............। मन से अहंकार और महत्-आत्मा उत्पन्न हुए। सारी सृष्टि तीन गुणों का मिश्रण मात्र है। २. मनुस्मृति I, ३२-४१ ब्रह्मा ने अपने शरीर को दो भागों में बांटा-एक पुरुष, दूसरा स्त्री। स्त्री ने 'विराज' को उत्पन्न किया। उसने तपस्या कर एक पुरुष को जन्म दिया । वही मनु कहलाया। मनु ने पहले दस प्रजापतियों को जन्म दिया। उनसे सात मनु, ईश्वर, देवता, ऋषि, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, अप्सराएं, सर्प, पक्षी तथा अन्यान्य सभी जीव और नक्षत्र उत्पन्न हुए। ३. मनुस्मृति I, ७४.७८ ब्रह्मा गाढ़ निद्रा से जागृत हुए । सृष्टि का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होंने पहले आकाश को उत्पन्न किया। आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से पानी और पानी से पृथ्वी उत्पन्न हुई। यह समूची सृष्टि का आदि-क्रम है। इसी प्रकार महाभारत के अध्याय १७५-१८० के अनेक स्थलों में सृष्टि की चर्चा प्राप्त है। विभिन्न पुराणों में भी सृष्टि की चर्चा मिलती है। इन सारी उत्तरवर्ती चर्चा का मूल स्रोत ब्राह्मण ग्रंथ और उपनिषद् हैं । सृष्टि की रचना अंडे से हुई, यह सिद्धान्त बहुमान्य रहा है । छांदोग्य आदि उपनिषदों में भी इसकी चर्चा है। ऋषिभाषित में भी अंडे से उत्पन्न सृष्टि की संक्षिप्त चर्चा प्राप्त है। श्रीगिरि अर्हत् के अनुसार पहले केवल जल था। उसमें एक अंडा उत्पन्न हुआ। वह फूटा और लोक निर्मित हो गया। उसने श्वास लेना प्रारंभ किया। यह वरुण-विधान है । जल का देवता वरुण है । इसलिए यह सृष्टि वरुण की सृष्टि है।' १२७. स्वयंभू ने इस लोक को बनाया (सयंभूणा कडे लोए) सृष्टि स्वयंभू कृत है । ब्रह्मा का अपर नाम स्वयंभू है, क्योंकि वे अपने आप उस अंडे से उत्पन्न हुए थे। चौदह मनुओं में पहले मनु का नाम 'स्वयंभू' है। १. इसिमासियाई, अध्ययन ३७, पृ० २३७ : एत्थ अंडे संतत्ते एत्थ लोए संभूते । एत्थं सासासे । इयं णे वरुणविहाणे......। Jain Education Intemational cation Intemational For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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