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टिप्पण
१. प्रतिमाएं (पडिमाओ)
प्रतिमा का अर्थ है अभिग्रह-अमुक प्रकार की प्रतिज्ञा या संकल्प । यहां प्रतिमा और प्रतिमावान् व्यक्ति का अभेदोपचार कर प्रतिमाओं का प्रतिमावान् व्यक्ति के रूप में निर्देश किया गया है। प्रस्तुत समवाय में उनके नामों का उल्लेख मात्र है। उनका विवरण दशाश्रुतस्कन्ध (दशा ६) के आधार पर इस प्रकार है१. दर्शनश्रावक-यह पहली प्रतिमा है। इसका कालमान एक मास का है। इसमें सर्वधर्म विषयक रुचि होती है, किन्तु
अनेक शीलवत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास आदि का आत्मा में प्रतिष्ठापन नहीं होता है। केवल सम्यग्-दर्शन उपलब्ध होता है। २. कृतव्रतकर्म-यह दूसरी प्रतिमा है। इसका कालमान दो मास का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी
उपासक अनेक शीलवत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास आदि का सम्यक् प्रतिष्ठापन करता है, किन्तु
बह सामायिक और देशावकाशिक का अनुपालन नहीं करता। ३. कृतसामायिक-यह तीसरी प्रतिमा है। इसका कालमान तीन महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रात: और सायंकाल सामायिक और देशावकाशिक का पालन करता है, परन्तु पर्व-दिनों में प्रति
पूर्ण पोषधोपवास नहीं करता। ४. पोषधोपवासनिरत-यह चौथी प्रतिमा है। इसका कालमान चार महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पौर्णमासी आदि पर्व-दिनों में प्रतिपूर्ण पोषध करता है
परन्तु 'एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा' का अनुगमन नहीं करता। ५. दिन में ब्रह्मचारी'"-यह पांचवीं प्रतिमा है। इसका कालमान पांच महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के
अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक "एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा" का सम्यक् अनुपालन करता है तथा स्नान नहीं करता, दिवाभोजी होता है, धोती के दोनों अंचलों को कटिभाग में टांक लेता है--नीचे से नहीं बांधता, दिवा ब्रह्मचारी और रात्री में अब्रह्मचर्य का परिमाण करता है। इस दशाश्रुतस्कन्धगत विवरण के अनुसार प्रस्तुत प्रतिमा का मुख्य अंग 'एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा' है। किन्तु
समवायांग में वह प्राप्त नहीं है। वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने इसकी चर्चा की है।' ६. दिन और रात में ब्रह्मचारी ----यह छठी प्रतिमा है। इसका कालमान छह महीनों का है । इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों
के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक दिन और रात में ब्रह्मचारी रहता है, किन्तु सचित्त का परित्याग नहीं करता। ७. सचित्त-परित्यागी-यह सातवी प्रतिमा है। इसका कालमान सात महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के __ अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक सम्पूर्ण सचित्त का परित्याग करता है, किन्तु आरम्भ का परित्याग नहीं करता। ८. प्रारम्भ-परित्यागो-यह आठवीं प्रतिमा है। इसका कालमान आठ महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के
अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक आरम्भ-हिंसा का परित्याग करता है, किन्तु प्रेष्यारम्भ का परित्याग नहीं करता। ६. प्रेष्य-परित्यागो-यह नौवीं प्रतिमा है। इसका कालमान नौ महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रेष्य आदि से हिंसा करवाने का परित्याग करता है, किन्तु उद्दिष्टभक्त का परित्याग नहीं
करता। १०. उद्दिष्टभक्त-परित्यागी-यह दसवीं प्रतिमा है। इसका कालमान दस महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के
अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक उद्दिष्ट भोजन का परित्याग करता है। वह शिर को क्षुर से मुंडवा लेता है या चोटी रख लेता है। घर के किसी विषय में पूछे जाने पर जानता हो तो कहता है-'मैं जानता हूँ और न जानता हो तो
कहता है-'मैं नहीं जानता।' ११. श्रमण-भूत-यह ग्यारहवीं प्रतिमा है । इसका कालमान ग्यारह महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त
प्रतिमाधारी उपासक शिर को क्षुर से मुंडवा लेता है या लुंचन करता है। वह साधु का वेश धारण कर ईर्यासमिति १. समवायांगवृत्ति, पत्र १९: पञ्चमीप्रतिमायामष्टम्यादिष पर्वस्वेकरात्रिकप्रतिमाकारी भवति, एतदयं च सूत्रमधिकृतसूत्रपुस्तकेषु न दृश्यते, दशादिषु पुनरुपलभ्यते इति तदर्थ उपशितः।
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