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समवायो
समवाय ६ : सू० ३-६
इत्थोणं इंदियाइं मणोहराई स्त्रीणामिन्द्रियाणि मनोहराणि मनो- ४. वह स्त्रियों की मनोहर और मनोमणोरमाइं आलोइत्ता निज्जाइत्ता रमाणि आलोकयिता निर्ध्याता भवति । रम इन्द्रियों को देखता है और एकाग्रभवइ।
चित्त से उनका निरीक्षण करता है। पणीयरसभोई भवइ। प्रणीतरसभोजी भवति।
५. वह प्रणीतरसभोजी होता है। पाणभोयणस्स अतिमायं पानभोजनस्य अतिमात्रं पाहा ६. वह पान-भोजन का अतिमात्र आहार आहारइत्ता भवइ। भवति ।
करता है। इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई स्त्रीणां पूर्वरतानि पूर्वक्रीडितानि स्मर्ता ७. वह पूर्व अवस्था में आचीर्ण भोग सुमरइत्ता भवइ। भवति।
और क्रीडाओं का स्मरण करता है। सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई शब्दानुपाती रूपानुपाती गंधानुपाती ८. वह शब्दानुपाती, रूपानुपाती, रसाणुवाई फासाणुवाई रसानुपाती स्पर्शानुपाती श्लोकानुपाती। गन्धानुपाती, रसानुपाती, स्पर्शानुपाती सिलोगाणुवाई।
और श्लोकानुपाती होता है । सायासोक्ख-पडिबद्धे यावि भवइ। सातसौख्य-प्रतिबद्धश्चापि भवति । ६. वह सात और सुख में प्रतिबद्ध
होता है। ३. नव बंभचेरा पण्णता, तं जहा- नव ब्रह्मचर्याणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ३. ब्रह्मचर्य-आचारांगसूत्र के अध्ययनसंगहणी गाहासंग्रहणी गाथा
नौ हैं, जैसे-शस्त्रपरिज्ञा, लोकविजय, सत्थपरिण्णा लोगविजओ शस्त्रपरिज्ञा लोकविजयः
शीतोष्णीय, सम्यक्त्व, आवंती, धुत, सीओसणिज्ज सम्मत्तं। शीतोष्णीयम् सम्यक्त्वम् ।
विमोहायतन, उपधानश्रुत और महाआवंती धुतं विमोहायणं आवंती धुतम् विमोहायतनम्
परिज्ञा। उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥
श्रुतम् महापरिज्ञा ॥ ४. पासे गं अरहा नव रयणीओ पार्श्वः अर्हन् नव रत्नोरूर्ध्वमुच्चत्वेन ४. अर्हत् पार्श्व नौ रनि ऊंचे थे ।
उड्ढं उच्चत्तेणं होत्या। आसीत् । ५. अभीजिनक्खत्ते साइरेगे नव अभिजिन्नक्षत्रं सातिरेकान्नव मुहूतांश- ५. अभिजित् नक्षत्र नौ मुहूत्तों से कुछ महत्ते चंदेणं सद्धि जोगं जोएइ। चन्द्रेण सार्द्ध योगं योजयति ।
अधिक काल तक (E% मुहूर्त)
चन्द्रमा के साथ योग करता है। ६. अभीजियाइया नव नक्खत्ता अभिजिदादीनि नव नक्षत्राणि चन्द्रस्यो- ६. अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्र के साथ
चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं तरेण योगं योजयन्ति, तद्यथा- उत्तर से योग करते हैं, जैसेजहा-अभीजि सवणो घणिट्ठा अभिजित् श्रवणः धनिष्ठा शतभिषग् अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग्, सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तरा- पूर्वभद्रपदाः उत्तरप्रोष्ठपदाः रेवती पूर्वभद्रपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा, रेवती, पोटुवया रेवई अस्सिणी भरणी। अश्विनी भरणी।
अश्विनी और भरणी। ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहुसमर- ७. उपरीतन तारागण इस रत्नप्रभा पृथ्वी
बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ मणीयाद् भूमिभागाद् नवयोजनशतमूर्ध्व के बहुसमरमणीय भूमिभाग से नौ सौ नव जोयणसए उड्ढं अबाहाए अबाधायां उपरितनं तारारूपं चारं योजन के अन्तर से भ्रमण करता है।
उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ। चरति । ८. जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिया जम्बूद्वीपे द्वीपे नवयोजनिका मत्स्याः ८. जम्बूद्वीप द्वीप में नौ योजन के मत्स्य
मच्छा पविसिसु वा पविसंति वा प्राविशन वा प्रविशन्ति वा प्रवेक्ष्यन्ति प्रविष्ट हुए थे, होते हैं और होंगे।
पविसिस्संति वा। है. विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए विजयस्य द्वारस्य एकैकस्यां बाहौ नव- विजयद्वार के प्रत्येक पार्श्व में नौ-नौ बाहाए नव-नव भोमा पण्णत्ता। नव भौमानि प्रज्ञप्तानि ।
भौम हैं।
वा।
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